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________________ ( ४७५ ) मिलिन्द ने बाद में अपने राज्य को अपने पुत्र को देकर प्रवज्या ग्रहण कर ली और विदर्शना-ज्ञान की वृद्धि करते हुए उसने अर्हत्त्व प्राप्त किया। ग्रीक इतिहासलेबक प्लूटार्क का कहना है कि मेनान्डर के मरने के वाद अनेक भारतीय नगरों में उसकी अस्थियों के ऊपर समाधियाँ बनाई गई । स्पष्टतः यह मेनान्डर के बौद्ध होने का साक्ष्य देता है और 'मिलिन्द पह' के वर्णनका समर्थन करता है। भगवान् बुद्ध (महापरिनिब्वाण सुत्त) और अनेक अर्हनों की अस्थियों पर ऐसा ही हुआ था। आचार्य बुद्धघोष के परिनिर्वाण पर इसी प्रकार का वर्णन 'बुद्धघोसप्पत्ति' पृष्ट ६६ (जेम्स ग्रे-द्वारा सम्पादित) में मिलता है। अतः पूर्वोक्त विवरण, प्लटार्क का साध्य और सब से अधिक राजा मेनान्डर के मिक्कों पर धर्म-चक्र के चिह्न का पाया जाना, इन सब बातों के प्रकाग में हम 'मिलिन्द पन्ह' के इस साक्ष्य को अस्वीकार नही कर सकते कि मेनान्डर बौद्ध हो गया था। इतने ठोस प्रमाणों के होते हुए भी कुछ पाश्चात्य विद्वानों ने यह स्वीकार नहीं किया कि मेनान्डर बौद्ध हो गया था। मम्भवतः पाश्चात्य संस्कृति की गौरव-रक्षा के अन्तहित भाव ने ही उन्हें इस स्पष्ट सत्य को स्वीकार करने से उन्मुख या उदासीन रक्खा है। ग्रीक राजा मेनान्डर और भदन्त नागसेन के संवाद के रूप में 'मिलिन्द पह' का लिखा जाना एक निश्चित ऐतिहासिक तथ्य होते हुए भी वह किसके द्वारा लिखा गया, किस रूप में लिखा गया, बाद में उसमें क्या परिवर्तन या परिवर्द्धन किए गए, आदि समस्याएं बाकी ही बच रहती है । इन समस्याओं पर आने से पूर्व हमें इतना तो १. पुत्तस्स रज्जं निय्यादेत्वा अगारस्मा अनगारियं पब्बजित्वा विप्पस्सनं वड्ढेत्वा अरहत्तं पापुणीति । पृष्ठ ४११ (बम्बई विश्वविद्यालय का संस्करण) २. मिलाइये रायस डेविड्स : मिलिन्द पञ्ह का अंग्रेजी अनुवाद (क्विशन्स ऑव किंग मिलिन्द), भाग प्रथम (सेक्रेड बुक्स ऑव दि ईस्ट, जिल्द ३५) पृष्ठ १९ (भूमिका); स्मिथ : अर्ली हिस्ट्री ऑव इंडिया, पृष्ठ १८७ ,२२६; गायगरः पालि लिटरेचर एंड लेंग्वेज, पृष्ठ २७; ये विद्वान् इतना तक तो स्वीकार करते है कि बौद्धों से उसकी सहानुभूति थी। इससे नछ अधिक विंटरनित्ज ने इंडियनलिटरेचर, जिल्द दूसरी, पृष्ठ १७५, पद-संकेत १ में कहा है। परन्तु स्पष्ट साड्स तो सत्य बात कहने का वह भी नहीं कर सके।
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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