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________________ ( ४३१ ) २०. क्या बुद्ध का लोकोत्तर व्यवहार (वोहार-वाणी) जैसी कोई चीज है ? अन्धक भिक्षु मज्झिम-निकाय के एक वचन के आधार पर ऐसा ही मानते थे। म्थविरवादी मतानमार ब्रह्मचर्य-संलग्न चिन और निर्वाण ही लोकोत्तर है। २१. क्या दुःख-विमुक्ति भी दो है और निर्वाण भी दो ? महीशामक और अन्धक भिक्ष कहते थे कि ऐसा ही है। एक दुःख-विमक्ति है चिन्तन या प्रतिसंख्यान (पटिसंखा) के द्वारा प्राप्त को हुई। और दूसी उसके बिना। इमो प्रकार एक निर्वाण है प्रतिसंख्यान के द्वारा प्राप्त किया हुआ और दुमरा उसके बिना। इसका निराकरण किया गया है। तीसरा अध्याय २८.३. क्या तथागत के दम बल उनके शिष्यों को भी प्राप्त हो सकते है ? __ अन्धकों को मान्यता इसके पक्ष में । २४. क्या विमुक्त होता हुआ मन लोभ-ग्रस्त होता है ? अन्धकों का विश्वास था कि अर्हत्त्व प्राप्त कर लेने पर ही लोभ से पूर्णत: विमुक्ति मिलती है । २५. क्या विमुक्ति क्रमशः क्रिया के रूप में होने वाली वस्तु है। २६. क्या स्रोत आपन्न का मत-वाद सम्बन्धी बन्धन नष्ट हुआ रहता है । अन्धक और सम्मितियों को ऐसी ही मान्यता थी । स्थविरवादी मन मध्यमार्गीय दृष्टिकोण ले लेता है अर्थात् उसकी मान्यता है कि स्रोत आपन्न का मत-वाद सम्बन्धी बन्धन टूटने लगता है किन्तु पूर्णतः टूट चुका हुआ नहीं होता। १. क्या स्रोतापन्न को श्रद्धेन्द्रिय आदि इन्द्रियों (जीवन-शक्तियों) की प्राप्ति हो जाती है ? अन्धकों का ऐसा ही विश्वास । २८-२९. क्या चर्म-चक्षु दिव्य-चक्षुओं में परिवर्तित हो सकते है, यदि उनका आधार कोई मानसिक धर्म हो । अन्धकों की ऐसी हो मान्यता । ३०. क्या दिव्य-चक्ष प्राप्त कर लेना कर्म के स्वरूप को समझ लेना हो है ? ३१. क्या देवताओं में संयम पाया जाता है ? 1. क्या अचेतन प्राणी (असा -मत्ता) भी विज्ञान (चित्त) से युक्त होते है ?
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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