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________________ ( ४२६ ) लित सिद्धान्तो में से तो आठ का खंडन प्रस्तुत किया गया है, जिनमें से दो तो महामांघियों के सम्प्रदाय हैं, यथा ( 2 ) महासांघिक ( चतुर्थ शताब्दी ईसवी पूर्व ) तथा गोकुलिक ( चौथी शताब्दी ईसवी पूर्व ) और छह सम्प्रदाय स्वयं स्थविरवादियों के हैं, यथा ( १ ) भद्रयानिक ( तीसरी शताब्दी ईसवी पूर्व ) ( २ ) महीशासक {चौथी शताब्दी ईसवी पूर्व ) (३) वात्सीपुत्रीय ( चौथी शताब्दी ईसवी पूर्व ) (४) सर्वास्तिवादी ( चौथी शताब्दी ईसवी पूर्व ) (५) साम्मित्तिय ( चौथी शताब्दी ईसवी पूर्व, तथा ( ९ ) वज्जिपुत्तक ( चौथी शताब्दी ईसवी पूर्व ) ' । इनके अलावा कुछ अर्वाचीन सिद्धान्तों का भी खंडन कथावत्थु में मिलता है । ये सम्प्रदाय भी आठ हैं, यथा, (१) अन्धक ( २ ) अपरशैलीय ( ३ ) पूर्वशैलीय ( ४ ) राजगिरिक (५) सिद्धार्थक ( ६ ) वैपुल्य ( वेतुल्ल) (3) उत्तरापथक और (८) हेतुवादी' । यदि स्वयं कथावत्थु में इन मम्प्रदायों का नामोल्लेख होता तब तो यह माना जा सकता था कि उसके जो अंश इम अर्वाचीन सम्प्रदायों के सिद्धान्तों का खंडन करते हैं वे अशोक के काल के बाद की रचना हैं। किन्तु वहाँ तो सिर्फ सिद्धान्तों का खंडन है, सिद्धान्तों को निश्चित सम्प्रदायों के साथ वहाँ नहीं जोड़ा गया है । यह कामतो ताँचवी शताब्दी में लिखी जाने वाली उसकी अट्ठकथा ने ही किया है । अतः इससे यही निश्चित निष्कर्ष निकल सकता है कि जब कथावत्थु के विचारक ने विरोधी सिद्धान्तों का खंडन किया था तब वे बौद्ध वायु-मंडल में विच्छिन्न ङ्काओं के रूप में प्रवाहित अवश्य हो रहे थे, किन्तु निश्चित सम्प्रदायों के साथ उनका अभी संबंध स्थापित नही हुआ था । संभव है कही कही व्यक्ति इनका उपदेश दे रहे हों या शंकाओं के रूप में उपस्थित कर रहे हों। बाद में चलकर इन्हीं में से निश्चित संप्रदायों का अविर्भाव हो गया, जैसा धर्म और दर्शन के इतिहास में अक्सर होता है । जिस समय कथावत्थ को अट्ठकथा लिखीगई १. ज्ञानातिलोक : गाइड थ्रू दि अभिधम्मपिटक, पृष्ठ ३८; राहुल सांकृत्यायन : पुरातत्त्व निबन्धावली, पृष्ठ १३० २. महावंस ५।१२ - १३ में भी हैमवत, राजगृहिक, सिद्धार्थक, पूर्वशैलीय, अपरशैलीय और वाजिरीय, इन छः सम्प्रदायों को अशोक के उत्तरकालीन माना गया है । अतः ज्ञानातिलोक : गाइड थ्रू दि अभिधम्मपिटक, पृष्ठ ३८ एवं राहुल सांकृत्यायन : पुरातत्व निबन्धावली, पृष्ठ १२०, का इनको उत्तरकालीन ठहराना युक्ति युक्त ही जान पड़ता है ।
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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