SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 446
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ४२५ ) उनके लिएविचारव्यक्तियोंया सम्प्रदायोंमेअधिक महत्वपूर्णथे।भारतीयज्ञानियों की परम्परा के यह अनुकूल ही है। किन्तु इस अभाव के कारण इन सम्प्रदायों का इति हास भी अनिश्चित ही रह गया है। स्थविरवादी परम्परा की मान्यता, जैसा उपर दिखाया जा चुका है, कथावत्थु की अट्ठकथा पर आश्रित है जो स्वयं पाँचवीं शताब्दी ईसवी कीरचनाहोने केकारण उतनीप्रामाणिक नहीं मानी जा सकती। फिर भी जो वस्तु निश्चित मानी जा सकती है वह यह है कि अशोक के बौद्ध धर्म ग्रहण कर लेने के समय उपर्युक्त अठारह सम्प्रदाय विद्यमान थे। अशोक के द्वारा पूजित किये जाने पर ये और भी बढने लगे । शास्ता का वास्तविक उपदेश क्या था, यह कुछ भी जान न पड़ने लगा। परिणामतःपाटलिपुत्र मे एक संगोतिबुलाई गई । इस सभा के सभापति थे स्थविर मोग्गलिपुत्त तिस्स । उन्होंने उपर्युक्त सम्प्रदायों में से केवल विशुद्ध स्थविरवाद को तो बुद्ध का मन्तव्य अथवा 'विभज्जवाद' माना और शेष को बुद्ध के मत से बाहर माना। इसी समय से सर्वास्तिवाद आदि सम्प्रदाय, जो अब तक स्थविरवादियों की हो शाखा माने जाते थे, अब अलग हो गये। अतः हम कह सकते है कि अशोक के समय तक बुद्ध-मन्तव्य अथवा 'विभज्यवाद' जिस नाम से व्यवहत होता रहा , वह और उसकी परम्परा 'स्थविरवाद' में निहित है । इमी स्थविरवाद के समर्थन की दृष्टि मे शेष १७ सम्प्रदायों के मन्तव्यों का खंडन 'कथावत्थु' में किया गया है । 'कथावत्थु' में विरोधी १७ सम्प्रदायों के सिद्धान्तों को प्रश्नात्मक ढंग से पहले पूर्वपक्ष के रूप में उपस्थित किया गया है, फिर स्थविरवादी दृष्टिकोण से उनका खंडन किया गया है । सिद्धान्तों के पूर्वापर -सम्बन्धी निर्वाचन में किसी निश्चित नियम का पालन नहीं किया गया। सिद्धान्तों को मानने वाले सम्प्रदायों का तो उसमें नामोल्लेख भी नहीं है, यह हम पहले ही कह चुके हैं। कुल मिलाकर 'कथावत्थु' में विरोधी सम्प्रदायों के २१६ मिद्धान्तों का खंडन है, जो २३ अध्यायों में विभक्त किये गये है। कुछ विद्वानों का कथन है कि इस ग्रंथ में न केवल अशोककालीन सिद्धान्तों का ही खंडन है, बल्कि कुछ बाद के सम्प्रदायो और सिद्धान्तों का भी खंडन सम्मिलित है । अत: उनके मत में इस ग्रंथ में कई अंश ईसा की पहली गताब्दी तक जोड़े जाते रहे । इस ग्रंथ में प्राचीन अर्थात् अशोक के समय में प्रच १. देखिये राहुल सांकृत्यायन : पुरातत्त्व निबन्धावली, पृष्ठ १३०; ज्ञानातिलोक; गाइड शू दि अभिधम्म पिटक, पृष्ठ ३७-३८
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy