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________________ ( ३५१ ) है ।' श्रीमती रायस डेविड्स २, ज्ञानातिलोक 3, घम्मानन्द कोसम्बी ४ और भिक्षु जगदीश काश्यप ५ की प्रणाली पर यदि अभिधम्म के अध्ययन को विकसित किया जाय तो उससे बौद्ध नैतिक मनोविज्ञान का मार्ग हमारे लिए अधिक प्रशस्त हो सकता है और हम अभिधम्म को उसकी वास्तविक विभूति में देख सकते हैं । अभिधम्मपिटक की उद्देस ( संक्षिप्त कथन ) के बाद निस ( विस्तृत विवेचन ) की वर्णन-प्रणाली, पर्यायवाची शब्दों और परिभाषाओं की अधिकता आदि प्रवृत्तियों के विषय में हम पहले कह ही चुके हैं । महत्त्व अभिधम्मपिटक के महत्व पर हमें दो दृष्टियों से विचार करना है, (१) स्थविरवाद परम्परा की दृष्टि से (२) अन्य बौद्ध संप्रदायों की दृष्टि से । जहाँ तक स्थविरवाद परम्परा का संबंध है, अभिधम्मपिटक को आरंभ से ही सुत्त-पिटक और विनय-पिटक के समान बुद्ध-वचन माना जाता है, यह हम पहले दिखा चुके है । बरमा में अभिधम्मपिटक का कितना अधिक आदर हैं, यह तत्संबंधी उस विस्तृत अध्ययन से ही स्पष्ट होता है जो उस देश में किया गया है । आठवें अध्याय में हम इस अध्ययन का विवेचन करेंगे । सिंहल भी अभिधम्म की पूजा में बरमा से पीछे नहीं रहा है । 'महावंश' में हम बार-बार पढ़ते हैं कि किस प्रकार विद्वान् सिंहली राजाओं ने अभिधम्म का आदरपूर्वक श्रवण किया और कुछ ने स्वयं उसका उपदेश भी किया । काश्यप प्रथम (९२९ ईसवी) ने तो संपूर्ण अभिधम्म को सोने के पत्रों पर खुदवाया और विशेषतः 'धम्मसंगणि' को बहुमूल्य रत्नों से मंडित किया । इसी प्रकार ग्यारहवीं शताब्दी में लंका का राजा विजयबाहु १. जैसा विटरनित्ज ने कह डाला है, देखिये उनकी हिस्ट्री आव इंडियन लिटरेचर, जिल्द दूसरी, पृष्ठ १६५-६६ । २. ए बुद्धिस्ट मेनुअल ऑव साइकोलोजीकल एथिक्स ( धम्मसंगणि का अनुवाद) की मननशील लेखिका । ३. गाइड दि अभिधम्मपिटक के लेखक और प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान् और साधक । 2 ४. विदेश में जाकर अनेक कठिनाइयों के उपरान्त अभिधम्म का अध्ययन करने वाले प्रथम भारतीय विद्वान् । ५. अभिधम्म - फिलॉसफी (जिल्द १, २) के लेखक, मनस्वी बौद्ध दार्शनिक और साधक ।.
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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