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________________ ( ३५० ) समझाया गया है। किन्तु अभिधम्म 'निप्परियाय देसना' है, अर्थात् वहाँ बिना उपमाएँ और उदाहरण दिये हुए धम्म को समझाया गया है। इसका कारण यह है कि अभिधम्म का प्रणयन साधारण जनता के लिए नहीं हुआ है । वह देव-मनुष्यों के लिए उपदेश किया हुआ बुद्ध-वचन है । त्रायस्त्रिश-लोक में अभिधम्म के उपदेश करने संबंधी गाथा का यही मानवीय रहस्य है। अभिधम्म-पिटक में साधारण जन-समाज की भाषा का प्रयोग नहीं किया गया है । वह अज्ञान पर आश्रित है । 'वृक्ष' 'मनुष्य' 'पशु' की वास्तविक सत्ता कहाँ हैं ? फिर भी हम व्यवहार में इस प्रकार के प्रयोग करते हैं । इसी को पालि-बौद्ध धर्म में सम्मति सच्च (संवृति सत्य) कहा गया है। सुत्त-पिटक इसी भाषा में लिखा गया है । यहां यह कहना अप्रासंगिक नहीं होगा कि बौद्धों ने जिसे 'सम्मति सच्च' कहा है, वही शंकर का व्यवहार-सत्य है, जिसे उन्होंने 'अविद्यावद्विषय' कहा है । इसके विपरीत ‘परमार्थ-सत्य' (पालि परमत्थ-सच्च) है, जहाँ माता माता नहीं है, पिता पिता नहीं है, मनुष्य मनुष्य नही है। इसी भाषा में अभिधम्म लिखा हुआ है। अतः उसमें वह प्राण-प्रतिष्ठा नहीं है, जो मुत्तन्त में है। एक में जीवन चारों ओर हिलोरें ले रहा है, दूसरे में वह सर्वथा अनुपस्थित है। अभिधम्म-पिटक की शैली की एक बड़ी विशेषता उसकी परिप्रश्नात्मक (पञ्हपरिपुच्छक) प्रणाली है प्रश्न और उत्तर के रूप में विषय को समझाया गया है। तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया'---इसका बड़ा अच्छा निर्वाह सत्त-पिटक और अभिधम्म-पिटक दोनों में ही दिखाया गया है। 'परिप्रश्न' की बात तो अभिधम्म ने अपने आप पूरी कर दी है, वह हमसे 'प्रणिपात' और 'मेवा' की भी पूरी अपक्षा रखता है । 'अट्ठसालिनी' की 'निदान-कथा' में आचार्य बद्धघोष ने एक मार्मिक प्रश्न किया है, “अभिधम्म का उदय किस स्रोत से हुआ है" ? उत्तर दिया है, "श्रद्धा से !" श्रद्धा के साथ हम अभिधम्म की लम्बो सेवा करें (जैसी वर्तमान समय में आचार्य धर्मानन्द कोसम्बो ने को) तो उसमे हम बहुत कुछ पा सकते हैं। उसके बिना तो हम कुछ ग्रोपीय विद्वानों की तरह मिर्फ उकता हो जायेंगे और कहेंगे कि यहाँ गम्भीर दर्शन कुछ नहीं १. देखिये 'अभिवम्मत्थ संगह' पर उनकी स्वरचित 'नवनीत टीका' का प्राक्कथन (महाबोधि सभा १९४१); देखिये धर्मदूत, सितम्बर ४८ में डा० बापट का "आचार्य धर्मानन्द कोसम्बो शीर्षक लेख भी (पष्ठ ८९-९५)
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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