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________________ ( ३२६ ) अभ्यास का अच्छा परिचय देता है। बिम्बिसार आदि के विवरण तत्कालीन राजनैतिक परिस्थिति और वैशाली आदि के विवरण उस समय को सामान्य मभ्यता और मनुष्यों के रहन-सहन के ढंग का अच्छा परिचय देते हैं । निश्चय ही इन दृष्टि से विनय-पिटक का और विशेषतः महावग्ग और चुलबाग का बड़ा नहत्त्व है। वहीं पर मुन-विभंग को विषय-वस्तु के पूरक-स्वस्त्र भिक्षु और भिक्षुणी संबोंके आन्तरिक जीवन एवं कार्य-संचालन का भी अच्छा चित्र दिया गया है। भिक्षु-संच में प्रवेश के नियम, उपोसथ के नियम, वर्षावास के नियम, उसके अन्त पर ‘पवारणा' सम्बन्धी नियम, संघ में फूट पड़ने पर उनमें एकता लाने के उपाय, भिक्षुओं के जोवन को छोटी से छोटी बातों पर भी सूक्ष्मतापूर्वक विचार, उनके कपड़े और जूते पहनने तक के ढंग, सवारी में बैठने सम्बन्धी नियम, निवास- स्थान और उसकी सफाई, मरम्मत आदि सम्बन्धी नियम, किसी भी विषय को यहाँ छोड़ा नहीं गया है। चुल्लवग्ग के दसवें खन्धक में केवल भिणी-जीवन सम्बन्धी नियमों और ज्ञातव्य वातों का ही विवरण है। 'बन्धक' मे हो संलग्न 'कम्म वाचा' के भी विवरण हैं जो संव सम्बन्धी विभिन्न कृत्यों और नन्कारोंके समय कार्य-प्रणाली के सूचक हैं । 'खन्धक' में आये हुए नियमों के समान यहाँ विभिन्न कर्मों (कम्म) के लिए प्रयुक्त शब्दों (वाचा) का विधान किया गया है। 'परिवार' या 'परिवार-पाठ' विनय-पिटक का अन्तिम भाग है। जैसा विटरनि-ज़ ने कहा है, 'परिवार' का विनय-पिटक से वही सम्बन्ध है, जो वेद की अनुक्रमणी और परिशिप्ठों का वेद के साथ । १ 'परिवार' सम्भवतः वाद का भी गंकलन है। वह प्रश्नोत्तर के रूप में है। विनय-पिटक की विषय-वस्तु की इमे एक प्रकार से 'मातिका' या विषय-मूची ही समझना चाहिए। परिवार' में ११ परिच्छेद है. जिनमें अभिधम्म की शैली पर विनय-पिटक के विषय की ही पुनरवृत्ति को गई है। परिवार' कोअन्तिम गाथाओं में कहा गया है "पृवाचरियमगंव पुच्छिन्वा वा तन्हि तम्हि दोप नाम महारो मुनवरो विदखणा इमं वित्थारगखे मकानग्गेन मज्झिने वितयित्वा लि वाभि नियकानं सुखावहं ।" उससे निश्चित है कि बिनय-सम्बन्धी शिक्षा के इस ग्रन्थ को 'दीप' नामक महामति भिा ने मिहल में लेखबद्ध करवाया। 'लेखबद्ध करवाने' (लेवापेसि) का अर्थ ५. हिस्ट्री ऑव इन्डियन लिटरेचर, जिल्द दूसरी, पृष्ठ ३३
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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