SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 305
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २८६ ) है। मध्य-देश की सीमाओं का उल्लेख वहाँ इस प्रकार किया गया है "मध्य देश की पूर्व दिशा में कजंगला नामक कस्बा है, उसके बाद बड़े गाल (के वन) हैं और, फिर आगे सीमान्त (प्रत्यन्त) देश । पूर्व-दक्षिण में सललवती नामक नदी हैं उसके आगे मीमान्त देश । दक्षिण दिशा में मेतकण्णिक नामक कस्बा है, उसके बाद सीमान्त देश । पश्चिम दिशा में थून नामक ब्राह्मण ग्राम है, उसके बाद सीमान्त देग। उत्तर दिशा में उशीरध्वज नामक पर्वत है, उसके बाद सीमान्त देश ।' १ यह वर्णन यहाँ विनय-पिटक से लिया गया है और वृद्ध-कालीन मध्यदेश की सीमाओं का प्रामाणिक परिचायक माना जाता है। जातक के इमी भाग में नरंजरा, अनोमा आदि नदियों, पाण्डव पर्वत, वैभारगिरि, गयासीस आदि पर्वतों, उझवेला, कपिलवस्तु, वाराणसी, राजगृह, लुम्बिनी , वैशाली, श्रावस्ती आदि नगरों और स्थानों, एवं उत्कल देश (उड़ीसा) का तथा यष्टिवन (लट्ठि वन) आदि वनों का उल्लेख मिलता है। सम्पूर्ण जातक में इस सम्बन्धी जितनी सामग्री भरी पड़ी है, उसका ठीक अनुमान ही नहीं लगाया जा सकता । सम्पूर्ण कोशल और मगध का तो उसके ग्रामों, नगरों, नदियों और पर्वतों के सहित वह पूरा वर्णन उपस्थित करता है । मोलह महाजनपदों (जिनका नामोल्लेख अंगतर-निकाय में मिलता है) का विस्तृत विवरण हमें असम्पदान जातक में मिलता है । महासुतसोम जातक (५३७) में हमें कुरु-देश के विस्तार के सम्बन्ध में महत्त्वपूर्ण सूचना मिलती है। इसी प्रकार धूमाकारि जातक (४१३) में कहा गया है कि युधिष्ठिर गोत्र के राजा का उस समय वहाँ राज्य था। कुरु-देश की राजधानी इन्द्रप्रस्थ का विस्तार ३०० योजन (त्रियोजनसते कुरुर8) महामतमोम जानक (५३७) में दिया गया है । धनंजय, को रव्य और सुतसोम आदि कुरू-राजाओं के नाम कुरुधम्म जातक (२७६), धूमकारि जातक (४१३), सम्भव जातक (५१५) और विधुर पंडित जातक (५४५) में आते हैं । उत्तर पंचाल के लिए कुरु और पंचाल वंशों में झगड़ा चलता रहा, इसकी सूचना हम चम्पेय्य जातक (५०६) तथा अन्य अनेक जातकों में पाने हैं। कभी वह कुरु-राष्ट्र में सम्मिलित हो जाता था (मोमनस्स-जातक, ५०५)२ और कभी कम्पिल १. जातक (प्रथम खंड) पृष्ठ ६४ (भदन्त आनन्द कौसल्यायन का अनुवाद) २. मिलाइये महाभारत १११३८ भी।
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy