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________________ ( २७१ ) जाने पर एक भिक्षुणी (सोमा) आत्मविश्वासपूर्वक कह उठती है "जब चित्त अच्छो प्रकार समाधि में स्थित है, जीवन नित्य ज्ञान में विद्यमान है, अन्तर्ज्ञान पूर्वक धर्म का सम्यक् दर्शन कर लिया गया है, तो स्त्री भाव इसमें हमारा क्या करेगा? 'थेरीगाथा' में नाटकीय तत्त्व की कमी नहीं है और अनेक महत्त्व पूर्ण संवाद है । रोहिणी और उसके पिता का संवाद ( २३१-२१०) सुन्दरी उसकी माता और सारथी का संवाद (३१२-३३७) चापा और उसके पति का संवाद (२९१३११) शैला और मार का संवाद, (५७-५९) चाला और मार का संवाद (१८२१९५) शिशुपचाला और मार का संवाद ( १९६-००३), उत्पलवर्णा और मार का का संवाद (२२४-२३५) बड्डमाता और उसके पुत्र का संवाद (२०४-२१२) आदि नाटकीय गति से परिपूर्ण है । पनिहारिन के रूपमें पूर्णा ने अपने पूर्व जीवन का जो परिचय दिया है, वह अपनी करुणा लिए हुए है । अम्बपाली की गाथाओं में अनित्यता का चित्रण गीतिकाव्य के सम्पूर्ण सौन्दर्य के साथ हुआ है । सुन्दरी की गाथाओं ( ३१२-३३७ ) और शुभा की गाथाओं ( ३६६-३९९ ) को विन्टर - नित्ज़ ने सुन्दर आख्यान - गीति कहा है ? | थेर और थेरीगाथाएँ क्रमशः उन भिक्षु और भिक्षुणियों की रचनाएं है, जिनके नामों मे वे सम्बन्धित हुँ । जर्मन विद्वान् के. ई. न्यूमनने उन पर एक मनुष्य के मन की छाप देखी है । वौद्धधर्म की प्रभाव समष्टि के कारण जो स्वभावतः ही इन साधक और साधिकाओं के अनुभव सिद्ध वचनों में होनी चाहिये, न्यूमन को यह भ्रम हो गया है । विन्टरनित्ज़ ने न्यूमन के मन मे महमत तो नही दिखाई पर कुछ भिक्षुओं की रचनाओं में भिक्षुणियों की रचनाएं और इसी प्रकार कुछ भिक्षुणियों की रचनाओं में भिक्षुओं की रचनाएं सम्मिलित हो गई है. ऐसा उन्होंने माना है । 3 वस्तुतः बात यह है कि गाथाओं का संकलन विषय क्रम से न होकर गाथाओं की 23 १. इन्डियन लिटरेचर, जिल्द दूसरी, पृष्ठ १०८-१०९ २. देखिये विन्टर नित्ज, इंडियन लिटरेचर, जिल्द दूसरी, पृष्ठ १०२, पंद संकेत १ ३. इन्डियन लिटरेचर, जिल्द दूसरी, पृष्ठ १०१
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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