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________________ ( २७० ) के साथ-साथ अपने पूर्व आश्रम के जीवन की अवस्थाओं के वर्णन की ओर ही अधिक है। भिक्षुओं में तो शीलव और जयन्त पुरोहित-पुत्र आदि कुछ-एक भिक्षुओं न ही हमें अपने पूर्व जीवन से परिचित कराया है । बाह्य जीवन की अपक्षा आन्तरिक अनुभव के प्रकाशन पर ही उनका ध्यान अधिक है, और उस अनुभव में इतना साम्य है कि कहीं-कहीं न केवल भिक्षुओं के उद्गारों की भाषा ही ममान है, बल्कि वे कई जगह व्यक्ति के प्रतिनिधि न होकर वर्ग (भिक्षु-वर्ग) के . ही प्रतिनिधि हो गये हैं। इसके विपरीत भिक्षुणियों के उद्गारों में व्यक्तिगत विशिष्टता की पूरी ध्वनि विद्यमान है। उन्होंने अपने पारिवारिक और सामाजिक जीवन के विषय में हमें बहुत कुछ बतलाया है। अपने पूर्व जीवन के सुखदुःख, हर्ष-विपाद आदि के बारे में भी उन्होंने बहुत कुछ कहा है। इस प्रकार अपने गृहस्थ-जीवन-के झझंटों की ओर संकेत मुक्ता, गुप्ता और शुभा भिक्षुणियों ने किया है । उब्बिरी, किमा गोतमी और वाशिष्ठी भिक्षुणियों के वचनों में उनके मन्तान-वियोग की पूरी झलक है । सुन्दरी नन्दा और चन्द्रा ने पति आदि सम्बन्धियों की मृत्य मे प्रव्रज्या प्राप्त की, इमकी सूचना है। पटाचारा के शब्दों में उसके करुण जीवन की सारी गाथा छिपी हुई पड़ी है। भिक्षुणियों की अनेक गाथाएँ (११; २५-२६; ३५-३८; ६१; ७२-८१; ९९-१०१; १०७-१११; १५७-१५८, आदि, आदि) 'अहं' से ही प्रारम्भ होती है और उनकी आन्तरिक ध्वनि भी अपनी विशिष्टता लिए हुए है। जहाँ तक विचार और काव्यगत मौन्दर्य का सम्बन्ध है, थेरगाथा और थेरीगाथा में अनेक समानताएं है । जिस प्रकार भिक्षुओं ने अशुभ की भावना की है उमी प्रकार भिक्षुणियों ने भी। “आज मेरी भव-बेड़ी कट गई ! 'मेरे हृदय में बिंधा तीर निकल गया, 'तृष्णा की लौ सदा के किए बुझ गई !' 'मैं सब मलों से विमुक्त हूँ' 'अब में सर्वथा शान्त हूँ, निष्पाप हूँ' आदि भिक्षुणियों के उद्गार अपना गम्भीर और गान्त प्रभाव लिए हुए हैं और मानव-मन को पवित्रता की उच्च भूमि में ले जाते हैं । पटाचारा का यह उपदेश-वाक्य 'बुद्ध-शासन को पूरा करो, जिसे करके पछताना नहीं होता । अभी शीघ्र पैर धोकर एकान्त (ध्यान) में बैठ जाओ” कितना प्रेरणादायक है ! भिक्षुणियों को जीवित विश्वास था कि वे निर्वाण का साक्षात्कार कर सकती हैं। स्त्री-भाव की अशक्तता दिखाई .
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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