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________________ ( २५० ) भिक्षुओं ने स्त्री के कामिनी-रूप पर विजय प्राप्त की है। उसके प्रलोभनों में वे नहीं आ सकने, ऐसा उन्होंने प्रसन्नतापूर्वक कहा है।' एक अलंकृता, सुवसना, मालाधारिणी, चन्दन लेप किये हुए नर्तकी को महापथ के बीच में नृत्य-गान करते हुए भिक्षु ने देखा है। उमी ममय उसने वामना के दुष्परिणाम पर चिन्तन किया है, अशुभ-भावना की है, और इस प्रकार अपने चिन को विमुक्त किया है। स्त्री के रूपादि की आमक्ति को भिक्षुओं ने सब दुःख का कारण माना है। श्मगान में स्त्री के सड़ते हुए शरीर को कृमि आदि से खाये जाते हुए देख कर उन्होंने उसके अनित्य और अशुभ म्प की भावना की है और सत्य का दर्शन किया है।४ स्त्री की काया के ही नहीं, उन्होंने अपनी काया के भी अशुभ, तुच्छ रूप १. सचे पि एतका भिग्यो आगमिस्सन्ति इथियो । नेव मं व्याधियिस्सन्ति धम्मे स्वम्हि पतिहितो ॥ गाथा, १२११. २. अलंकता सुवसना मालिनी चन्दनुस्सदा । मझे महापथे नारी तुरिये नच्चति नट्टको ॥ गाथा, २६७ ततो मे मनसोकारो. . . . . . ततो चित्तं विमुच्चि मे ॥२६९-७०; मिलाइये गाथाएँ ४५९-४६५ भी जहाँ 'पैरों में महावर लगाये हुए' (अलत्तककता पादा) सुवसना, अलंकृता, स्मित करती हुई वेश्या ने भिक्ष के सामने गृहस्थ-जीवन में प्रवेश का प्रस्ताव रक्खा है 'अहं वित्तं ददामि ते' (मैं तुझे धन देती हूँ) यह कहते हुए, पर भिक्षु के उसे मृत्यु का पाश समझ कर अशुभ की भावना की है और सत्य का साक्षात्कार किया है। “काम-वासना में दुष्परिणाम देख कर मैने चित्तमल-रहित अवस्था को प्राप्त कर लिया" (कामेस्वादीनवं . . . . . . पत्तो मे आसवक्खयो--गाथा ४५८); मिलाइये "अंकेन पुत्तमादाय भरिया में उपागमि. .... . ततो मे मनसोकारो..... ततो चित्तं विमुच्चि में", आदि गाथाएँ २९९-३०१ भी ३. इत्थिरूपे इत्थिरसे फोहब्बे पि च इत्थिया। इत्थिगन्धेसु सारत्तो विविधं विन्दते दुखं ॥ गाथा ७३८ ४. अपविद्धं सुसानस्मिं खज्जन्तिं किमिही फुटं । आतुरं असुचि पूर्ति पस्स कुल्ल समुस्मयं । गाथा ३९३ मिलाइये 'धिरत्थु पूरे
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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