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________________ ( २४९ ) वे केवल शान्त और गम्भीर है। अनासक्ति उनके जीवन का मुख्य लक्षण है । जिन्होंने विषयों को वमन के समान छोड़ दिया है, सुख-दुःख जिनके लिए अर्थहीन हो गए हैं, गीत और उष्ण जिनके लिए समान है, ऐसे साधकों की मानसिक दशाओं का वर्णन ही हमें 'थेरगाथा' में मिलता है । भिक्षु जीवन के आदर्श को धर्म-सेनापति सारिपुत्र ने सदा के लिए स्मरणीय शव्दों में व्यक्त करते हुए अपने विषय में कहा है : ——— नाभिनन्दामि मरणं नाभिनन्दामि जीवितं । कालञ्च पटिकङ्क्षामि सम्पजानो पटिस्सतो | नाभिनन्दामि मरणं नाभिनन्दामि जीवितं । कालञ्च पटिकङ्क्षामि निब्बिसं भतको यथा ॥ ' ( न मुझे मरने की इच्छा है, न जीने की अभिलाषा । ज्ञान पूर्वक सावधान हो मैं अपने समय की प्रतीक्षा कर रहा हूँ । न मुझे मरने की इच्छा है, न जीने की अभिलाषा | काम करनेके बाद अपनी मजूरी पाने की प्रतीक्षा करने वाले दाम के समान मै अपने समय की प्रतीक्षा कर रहा हूँ ) धर्मसेनापति सारिपुत्र के परिनिर्वाण पर महामोग्गल्लान स्थविर ने संस्कारों की अनित्यता पर जो भाव प्रकट किए हैं, वे भगवान् के उन महाशिष्य के हृदय के अन्तस्तल तक हमें ले जाते हैं । 'अनिच्चा वत संखारा' का उद्गार करते हुए महामोग्गलान स्थविर कहते हैं- तदासिय भिसनकं तदासि लोमहसनं । अनेकाकारसम्पन्न सारिपुत्तम्हि निब्बुते ॥ २ यह भीषण हुआ, यह रोमांचकारी हुआ । अनेक ध्यान-समापत्तियों से सम्पन्न सारिपुत्र परिनिर्वृत्त हो गये ! १. गाथाएँ १००२-१००३; स्थविर संकिच्च ने भी इन भावों की पुनरावृत्ति की है, गाथाएँ ६०६-६०७ और अंशत: स्थविर निसभ ने भी, गाथा १९६; मिलिन्दप्रश्न में भी इन गाथाओं को उद्धृत किया गया है। देखिये मिलिदप्रश्न, पृष्ठ ५५ ( भिक्षु जगदीश काश्यप का अनुवाद ) २. गाथाएँ ११५८-११५९ ।
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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