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________________ ( ५ ) का मूल उद्गम संस्कृत 'पाठ' शब्द है । इस मत के अनुसार संस्कृत 'पाठ' शब्द का काही विकृत या परिवर्तित रूप 'पाळि' या 'पालि' है । यह विकास क्रम भिक्षु सिद्धार्थ के मतानुसार कुछ-कुछ इस प्रकार चला । प्राचीन काल में 'पाठ' शब्द का प्रयोग ब्राह्मण लोग विशेषतः वेद-वाक्यों के 'पाठ' के लिये किया करते थे । भगवान् बुद्ध के समय में भी यह परम्परा ब्राह्मणों में चली आ रही थी । जब अनेक ब्राह्मण-महाशाल बुद्ध-मत में प्रविष्ट हुए तो उन्होंने इसी शब्द को, जिसे वे पहले वेद के पाठ के अर्थ में प्रयुक्त करते थे, अब बुद्ध वचनों के लिये प्रयुक्त करना आरम्भ कर दिया। यह स्वाभाविक भी था । जब उन्होंने बुद्ध को 'मुनि' 'वेदज्ञ' 'वेदान्तज्ञ' कह कर अपनी श्रद्धा अर्पित की, तो उनके वचनों के निर्देश के लिये भी वे पवित्र 'पाठ' शब्द का अभिधान क्यों न करते ? भिक्षु सिद्धार्थ ने ठीक ही 'पाठ' शब्द के अतिरिक्त कुछ अन्य शब्दों की सूची दी है, जो पहले वैदिक परम्परा के थे किन्तु बौद्ध संघ में आकर जिन्होंने नये स्वरूप ग्रहण कर लिये थे । 'संहिता' 'सहित' होगई, 'तन्त्र' 'तन्ति' हो गया, 'प्रवचन' 'पावचन' हो गया । अतः प्राचीन 'पाठ' शब्द का भी बौद्ध संस्करण असम्भव न था । किन्तु बौद्धों ने जो कुछ लिया उसे एक नया स्वरूप भी प्रदान किया। संस्कृत 'पाठ' शब्द भिक्षु संघ में आकर 'पाळ' हो गया । यह ध्वनि परिवर्तन भाषा - विज्ञान के नियमों के आधार पर सर्वथा सम्भव भी था। संस्कृत के सभी मूर्द्धन्य व्यञ्जन ( ट् ठ् ड् ढ् ण् ) पालि और प्राकृत भाषाओं में 'लू' हो जाते हैं। उदाहरणतः संस्कृत 'आटविक' पालि में 'आळविक' है, सं० 'पटच्चर' पालि में 'पळन्चर' है, मं० 'एडक' पालि में 'एलक' है। इसी प्रकार सं० वेणु-पालि वेलु, सं० दृढ़-पालि दल्ह, आदि आदि । 'पाळ' शब्द का ही बाद में विकृत रूप 'पालि' हो गया । यह भी भाषा विज्ञान सम्बन्धी नियमों के असंगत न था । अन्त्य स्वर-परिवर्तन का विधान पालि में अक्सर देखा जाता है, जैसे संस्कृत' अंगुल' से पालि 'अंगुलि -अंगुली; मं० 'सर्वज्ञ' मे पालि सब्बञ्ज आदि, आदि । अतः मिथ्या सादृश्य के आधार पर 'पाठ' शब्द का विकृत रूप 'पालि' हो गया । 'पालि' शब्द में 'ल्' व्यञ्जन वैदिक मूर्द्धन्य 'व्' ध्वनि का प्रतिरूप था। इस ध्वनि का विकास कई आधुनिक भारतीय भाषाओं में 'ड' के रूप में हुआ है । यह वैदिक ध्वनि अन्तःस्थ 'ल' से भिन्न थी । किन्तु 'ल' और 'ल' के उच्चारणों में भेद न कर सकने के कारण बाद में मिथ्या - सादृश्य के आधार पर 'पालि' शब्द को 'पालि' शब्द के साथ मिला दिया गया, जो वास्तव में व्युत्पत्ति और अर्थ की दृष्टि से एक विलकुल भिन्न शब्द था । 'पालि' शब्द के साथ इस
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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