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________________ के द्वारा प्रयुक्त ‘पालि' शब्द के अर्थो के साथ संगत करने का प्रयत्न करती है। इन तीनों स्थापनाओं की समीक्षा हमें करनी है। पहली स्थापना के अनुसार ‘पालि' शब्द का प्राचीनतम रूप हमें 'परियाय' शब्द में मिलता है। 'परियाय' शब्द त्रिपिटक में अनेक बार आया है। कहीं कहीं 'धम्म' शब्द के साथ और कहीं कहीं अकेले भी इस शब्द का व्यवहार हुआ है। उदाहरणत: 'को नामो 'अयं भन्ते धम्मपरियायो ति' (भन्ते ! यह किस नाम का धम्म-परियाय है) 'भगवता अनेक परियायेन धम्मो पकासितो'२ (भगवान् ने अनेक पर्यायों से धर्म को प्रकाशित किया) आदि, आदि । स्पष्टतः ऐसे स्थलों में परियाय' शब्द का अर्थ बुद्धोपदेश है। बाद में 'परियाय' शब्द का ही विकृत रूप पलियाय' हो गया। अशोक के प्रसिद्ध भाव शिलालेख में 'पलियाय' शब्द का प्रयोग इसी अर्थ में मिलता है। मगध के भिक्षु-संघ को कुछ चुने हुए बुद्ध-वचनों के स्वाध्याय करने की प्रेरणा देते हुए प्रियदर्शी 'धम्मराजा' कहते हैं “भन्ते ! ये धम्म-पलियाय हैं। मैं चाहता हूँ कि सभी भिक्षु-भिक्षुणियाँ, उपासक और उपासिकाएँ, इन्हें सदा सुनें और पालन करें।"३ 'पलियाय' शब्द के 'पलि' उपसर्ग का दीर्घ होकर बाद में पालियाय' शब्द बन गया। ‘पालियाय' शब्द का ही संक्षिप्त रूप बाद में 'पालि' होकर 'बुद्ध-वचन' या 'मूल त्रिपिटक' के अर्थ में प्रयुक्त होने लगा। इस मत की स्थापना भिक्षु जगदीश काश्यप ने अपने 'पालि महाव्याकरण' की वस्तुकथा में योग्यतापूर्वक की है।४ । दुसरा मत, जिसकी स्थापना भिक्षु सिद्धार्थ ने अपने अंग्रेजी निबन्ध “पालि भाषा का उद्गम और विकास, विशेषतः संस्कृत व्याकरण के आधार पर"में की है, इससे कुछ भिन्न है । उनके मतानुसार ‘पालि' या ठीक कहें तो 'पाळि' शब्द १. ब्रह्मजाल-सुत्त (दोघ. ११) २. सामाफल-सुत्त (वीघ-श२) ३. इमानि भन्ते धम्मपलियायानि...........एतान भन्ते धम्मपलियायानि इच्छामि किति बहुके भिखुपाये भिखु निये चा अभिखिनं सुनयु च उपधालेयेय च। हेवं हेवा उपासका च उपासिका चा। ४. पृष्ठ आठ-बारह। ५. बुद्धिस्टिक स्टडीज़ (डा० लाहा द्वारा सम्पादित) पृष्ठ ६४१-६५६
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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