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________________ ( २३५ ) तारा चमकता है...भिक्षुओ ! मैत्री भावना भी सब पुण्यकारी कर्मों के ऊपर चमकती है, प्रभासित होती है, क्योंकि वह चिन की विमक्ति ही है।" सुत्तनिपात मन-निपात भी खड्क-निकाय का धम्मपद के समान ही अत्यन्त महत्वपूर्ण ग्रन्थ है. यद्यपि हिन्दी में वह अभी इतना लोकप्रिय नहीं हुआ जितना धम्मपद । फिर भी मौलिक बौद्ध धर्म और बौद्ध माहित्य की दृष्टि से इस ग्रन्थ-रत्न का अत्यन्त ऊँचा स्थान है । अशोक ने भाव शिला लेख में जिन मान बुद्धोपदेशों के नाम दिये है उनमें से तीन अकेले सुत्तनिपात में है, यथा मोनेय्य मूने =नालक सुत्त; मुनि गाथा-मुनि मुत्न एवं उपतिसपमने = मारिपुन- . सुत्त । मुत-निपात की भाषा वैदिक भाषा के बहुत अधिक समीप है। वैदिक भाषा की विविधरूपता और उसके अनेक प्रकार के व्यत्ययों का विवरण हम पहले दे चुके है ।२ जिन अनेक प्रयोगों को बाद में चल कर संस्कृत ने छोड़ दिया, सुत्न-निपात में हमें ज्यों के त्यों मिलते हैं। संस्कृत और पालि का विकास समकालिक है, पर चंकि पालि विशेषतः जन-भाषा थी उमने १. नागरी लिपि में डा० बापट द्वारा सम्पादित, पूना १९२४ । पर यह संस्करण आज कल अप्राप्य है । सन् १९३७ (बुद्धान्द २४८१) में खुदक-निकाय के अन्य दस ग्रन्थों के साथ-साथ सुत्त-निपात का भी नागरी लिपि में सम्पादन महापंडित राहुल सांकृत्यायन, भदन्त आनन्द कौसल्यायन और भिक्षु जगदोश काश्यप ने किया है। बर्मी बिहार सारनाथ (बनारस) द्वारा प्रकाशित । पर यह संस्करण भी अब नहीं मिलता। सुत्त-निपात के पाँच वर्गों में से प्रथम वर्ग (उरग वर्ग) का हिन्दी-अनुवाद भिक्षु धर्मरत्न ने किया है । साय में मूल पालि भी दी है । प्रकाशक भिक्षु महानाम, मूलगन्धकुटी विहार, सारनाथ (बनारस), बुद्धान्द २४८८ (१९४४ ई०) । सुत्त-निपात के शेष भाग का भी अनुवाद भिक्षु धर्मरत्न ने किया है, और इस समय प्रेस में है । बंगला में पूरे सुत्त-निपात का अनुवाद भिक्ष शीलभद्र ने किया है, जो कलकत्ता से सन् १९४१ में प्रकाशित हुआ है। २. देखिए प्रथम परिच्छेद में पालि और वैदिक भाषा की तुलना ।
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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