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________________ ( २१९ ) “भिक्षुओ ! इस मल को त्याग कर निर्मल बनो।" "धम्मट्ठवग्ग" (वर्ग १९) में वास्तविक धर्मात्मा पुरुष के लक्षण बतलाये गये हैं।” “बहुत बोलने से धर्मात्मा नहीं होता। जो थोड़ा भी सुन कर शरीर से धर्म का आचरण करता है और जो धर्म में असावधानी नहीं करता, वही वास्तव में धर्मधर है।" इसी प्रकार "मौन होने से मुनि नहीं होता। वह तो मूढ़ और अविद्वान् भी हो सकता है। जो पापों का परित्याग करता है, वही मुनि है । चूंकि वह दोनों लोकों का मनन करता है, इसीलिये वह मुनि कहलाता है।" इसी वर्ग में भगवान् का यह उत्साहकारी मार्मिक उपदेश भी है, 'भिक्षुओ ! जब तक चित्त-मलों का विनाश न कर दो नै टो" सिर । म मावि शालो . "rm.'' (वर्ग २०) में निर्वाण-गामी विशुद्धि -मार्ग का वर्णन है। सभी संस्कारों को अनित्य, दु:ख और अनात्म समझते हुए मनुष्य को चाहिये कि “वाणी की रक्षा करने वाला और मन से संयमी रहे तथा काया से पाप न करे । इन तीनों कर्मपथों की शुद्धि करे और ऋषि (बुद्ध) के बताये धर्म का सेवन करे।” 'पकिणकवग्ग' (वर्ग २१) में अहिंसा, और शरीर के दुःखदोषानुचिन्तन आदि का वर्णन है। “निरय- वग्ग" (वर्ग २२) में बतलाया गया है कि कैसे पुरुष नरक-गामी होते हैं । “नाग-वग्ग" (वर्ग २३) में नाग (हाथी) के समान अडिग रहने का उपदेश दिया गया है । “जैसे युद्ध में हाथी धनुष से गिरे वाण को सहन करता है, वैसे ही वाक्यों को सहन करूँगा । संसार में तो दुःशील आदमी ही अधिक है।" "तण्हा वग्ग” (वर्ग २४) में तृष्णा को खोद डालने का उपदेश है। अपने पास ... . .. . .. .... .. ... . ... . . ...
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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