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________________ ( २१७ ) (वर्ग ५) में मूों के लक्षण बतलाते हुए कहा गया है कि उनके लिये संसार (आवा गमन) लम्बा है। इसी वर्ग में सांसारिक उन्नति और परमार्थ के मार्ग की विभिन्नता बतलाते हुए कहा गया है “लाभ का रास्ता दूसरा है और निर्वाण को ले जाने वाला रास्ता दूसरा है। इसे जानकर बद्ध का अनुगामी भिक्ष सत्कार का अभिनन्दन नहीं करता, बल्कि एकान्तचर्या को बढ़ाता है। '' 'पंडितवग्ग' (वर्ग ६) में वास्तविक पंडित पुरुषों के लक्षण बतलाये गये हैं । “जो अपने लिये या दूसरों के लिये पुत्र, धन और राज्य नहीं चाहते, न अधर्म से अपनी उन्नति चाहते हैं, वही सदाचारी पुरुष, प्रज्ञावान् और धार्मिक हैं।" अर्हन्त वग्ग (वर्ग ७) में बड़ी सुन्दर काव्य-मय भाषा में अर्हतों के लक्षण कहे गये हैं। "जिसका मार्ग-गमन ममाप्त हो चका है। जो शोक-रहित तथा सर्वथा मक्त है, जिसकी सभी ग्रन्थियाँ क्षीण हो गई हैं, उसके लिये मन्ताप नहीं है।" "सचेत हो वह उद्योग करते हैं। गृह-सुख में रमण नहीं करते। हंस जैसे क्षुद्र जलाशय को छोड़ कर चले जाते हैं, वैसे ही अर्हत् गह को छोड़ चले जाते हैं।" "जो वस्तुओं का संचय नहीं करते, जिनका भोजन नियत है, शन्यता-स्वरूप तथा कारण-रहित मोक्षजिनको दिखाई पड़ता है, उनकी गति आकाश में पक्षियों की भाँति अज्ञेय है।" "गाँव में या जंगल में, नीचे या ऊँचे स्थल में, जहाँ कहीं अर्हत् लोग विहार करते हैं, वही रमणीय भूमि है।" सहस्सवग्ग (वर्ग ८) की मल भावना यह है कि सहस्रों गाथाओं के सुनने से एक शब्द का सुनना अच्छा है, यदि उससे शान्ति मिले। सिद्धान्त के मन भर से अभ्यास का कण भर अच्छा है। सहयों यज्ञों से सदाचारी जीवन श्रेष्ठ है । पापवग्ग (वर्ग ९) में पाप न करने का उपदेश दिया गया है, क्योंकि "न आकाश में, न समुद्र के मध्य में, न पर्वतों के विवर में प्रवेश कर--- संसार में कोई स्थान नहीं है जहाँ रह कर, पाप कर्मो के फल से प्राणी बच सके।" दंडवग्ग (वर्ग १०) में कहा गया है कि जो सारे प्राणियों के प्रति दंडत्यागी है, वही ब्राह्मण है, वही श्रमण है, वही भिक्षु है।" 'जरावग्ग' (वर्ग ११) में वृद्धावस्था के दुःखों का दर्शन है। इसी वर्ग में संसार की अनित्यता की याद दिलाते हुए यह मार्मिक उपदेश दिया गया है “जब नित्य ही आग जल रही हो तो क्या हँसी है, क्या आनन्द मनाना है ! अन्धकार मे घिरे हुए तुम दीपक को क्यों नहीं ढूंढ़ते हो ?" इमी वर्ग में भगवान् के वे उद्गार भी संनिहित है जो उन्होंने सम्यक्
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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