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________________ पहला अध्याय पालि भाषा 'पालि' शब्दार्थ-निर्णय जिसे हम आज पालि भाषा कहते हैं, वह उसका प्रारम्भिक नाम नही है । भाषा-विशेष के अर्थ में पालि शब्द का प्रयोग अपेक्षाकृत नवीन है। कम से कम ईसा की तेरहवीं या चौदहवीं शताब्दीसे पूर्व उसका इस अर्थ में प्रयोग नहीं मिलता। 'पालि' शब्द का सब से पहला व्यापक प्रयोग हमें आचार्य बुद्धघोष (चौथी-पाँचवीं शताब्दी ईसवी) की अट्ठकथाओं और उनके 'विसुद्धिमग्ग' में मिलता है। वहाँ यह शब्द अपने उत्तरकालीन भाषा-सम्बन्धी अर्थ से मुक्त है। आचार्य बुद्धघोष ने दो अर्थों में इस शब्द का प्रयोग किया है . (१) बुद्ध-वचन या मूल त्रिपिटक के अर्थ में, (२) 'पाठ' या 'मूल त्रिपिटक के पाठ' के अर्थ में । चूंकि 'मूल त्रिपिटक' और 'मूल त्रिपिटक के पाठ' में भेद कहने भर को है, अतः मोटे तौर से कहा जा सकता है कि 'मूल त्रिपिटक' या 'बुद्ध-वचन' के सामान्य अर्थ में ही बुद्धघोष महास्थविर ने 'पालि' शब्द का प्रयोग किया है। जिस किसी प्रसंग में उन्हें पोराणअट्ठकथा (प्राचीन अर्थकथा) से विभिन्नता दिखाने के लिये मूल त्रिपिटक के किसी अंश को उद्धृत करना पड़ा है, वहाँ उन्होंने 'पालि शब्द से बुद्ध-वचन या मूल त्रिपिटक को अभिव्यक्त किया है, जैसे 'विसुद्धिमग्ग' में “इमानि ताव पालियं, अट्ठकथायं पन ...." (ये तो ‘पालि' में हैं, किन्तु 'अट्ठकथा' में तो......" तथा वहीं "नेव पालियं न अट्ठकथायं आगतं” (यह न ‘पालि' में आया है और न 'अट्ठकथा' में) । इसी प्रकार 'सुमंगलविलासिनी' (दीघ-निकाय की अट्ठकथा) की सामञफलसुत्त-वण्णना में "नेव पालियं न अट्ठकथायं दिस्सति" (यह न ‘पालि' में दिखाई देता है और न ‘अट्ठकथा' में) तथा पुग्गलपत्तिअट्ठकथा में "पालिमुत्तकेन पन अट्ठकथानयेन". ('पालि' को छोड़कर 'अट्ठकथा' की प्रणाली से) आदि । इसके अलावा जहाँ उन्हें त्रिपिटक की व्याख्या करते हुए कहीं कहीं उसके पाठान्तरों का निदश करना पड़ा है, वहाँ उन्होने 'इति
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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