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________________ ( १९० ) (जिनके कारण ही इस प्रसंग को यहाँ अंगुत्तर-निकाय के इस निपात में स्थान मिला है) के पालन करने की शर्त लेकर महाप्रजापती को प्रव्रज्या ग्रहण करने की आज्ञा दे दी। उसी समय से अन्य भी स्त्रियाँ भिक्षुणियाँ हुई और बाद में एक अलग भिक्षुणी-संघ ही बन गया। किन्तु स्त्रियों को प्रव्रज्या की अनुमति देते समय भगवान् ने चेतावनी भी दी, जिसे बद्ध-धर्म के बाद के इतिहास ने सम्भवतः सच्चा भी प्रमाणित कर दिया है “आनन्द ! यदि तथागत-प्रवेदित-धर्म-विनय में स्त्रियाँ प्रव्रज्या न पातीं, तो यह ब्रह्मचर्य चिर-स्थायी होता, सद्धर्म सहस्र वर्ष ठहरता। किन्तु चूंकि आनन्द ! स्त्रियाँ प्रवजित हुई, अव सद्धर्म चिरस्थायी न होगा, सद्धर्म अब पाँच सौ वर्ष ही ठहरेगा।. . . . . .आनन्द ! जैसे आदमी पानी की रोक-थाम के लिये, बड़े तालाव को रोकने के लिये, मेंड़ वाँधे, उसी प्रकार आनन्द । मने रोक-थाम के लिये भिक्षुणियों को जीवन-भर अनुल्लंघनीय आठ गरु-धर्मों में प्रतिष्ठापित किया।" इसी प्रसंग में यहाँ यह भी कह देना अप्रासङ्गिक न होगा कि आनन्द किस प्रकार स्त्री-जाति के समर्थन में अपने युग से वहत आगे थे, इसकी भी सूचना हमें इस निकाय में मिलती है। स्त्रियों को प्रव्रज्या दिलाने में उन्होंने महाप्रजापती गोतमी की किस कुशलता के साथ सहायता की, यह हम अभी देख ही चुके है। हम एक बार उन्हें (चतुक्क-निपात में) भगवान् से यह तक पूछते देखते हैं, “भन्ते! क्या कारण है कि स्त्रियाँ परिषदों में स्थान नहीं पातीं, स्वतन्त्र उद्योग नहीं करतीं, स्वावलम्बन का जीवन नहीं वितातीं ?" हम जानते हैं कि आनन्द को अपने इन सब विचारों के कारण ही प्रथम संगीति में क्षमा-याचना करनी पड़ी। मनुष्यता के नाते आज आनन्द इसीलिये हमारे लिये अधिक प्रिय बन गये हैं, उस समय के लोगों ने चाहे जो सोचा हो। अंगुत्तर-निकाय में इस प्रकार बुद्ध के शिष्यों के स्वभाव और जीवन पर प्रकाश डालने वाली प्रभुत सामग्री मिलती है। प्रवज्या ग्रहण करने के बाद प्रजापती गोतमी इसी निकाय (अट्ठक-निपात) में भगवान् से पूछती है "भन्ते ! अच्छा हो यदि भगवान् संक्षेप से मुझे धर्म का उपदेश करें, ताकि मै उसे मन कर, प्रमाद-रहित हो, आत्म-संयम कर जीवन में विचरूं ।" भगवान् का उत्तर बद्ध-धर्म के उदार मन्तव्य को समझने के लिये इतना महत्वपूर्ण है कि उसको उद्धृत करने का लोभ संवरण नहीं किया जा सकता। “गोतमी ! जिन बातों को तु जाने कि ये बातें सराग के लिये है, विगग के लिये नहीं, संयोग के लिये हैं वियोग के लिये नहीं, संग्रह के लिये हैं, असंग्रह के लिये नहीं, इच्छाओं को बढाने
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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