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________________ ( १८१ ) उनकी उपयक्तता उनके मंख्यात्मक स्वम्प में वहाँ अमंदिग्ध भी है। अंगत्तर. निकाय, जैमा हम अभी देखेंगे वह और उनके धम्म और विनय के सम्बन्ध में कुछ ऐसी भी सचना देता है जो प्राचीन भी है और साथ ही माथ अन्य निकायों में भी नहीं मिलती । पूनमक्तियाँ आर संख्यात्मक विवरण विशेषत: पाश्च त्य विद्वानों को बड़े अचिकर प्रतीत हुए है, अत: उन्होंने अंगुनर-निकाय के वास्तविक मूल्यांकन करने में बड़ी कृपणता दिखाई है । माहित्यिक और ऐतिहासिक दृष्टियों से अंगुनर-निकाय का स्थान दीघ, मज्झिम और संयुक्त निकायों के साथ ही है और उसमें भी, केवल कुछ कुत्रिम वर्गीकरण में, बुद्ध के जीवन और उपदेशों की वही माक्षात सम्पर्क मे प्राप्त स्मतियाँ उपलब्ध होती है, जमी प्रथम तीन निकायों में । यह हम उसकी विषय-वस्तु के विवरण से अभी देखेंगे। अंगनर-निकाय की विषय-वस्तु का चाहे जितना विस्तृत विवरण दिया जाय वह उमकी वास्तविक विभति को नहीं दिखा सकता। इमका कारण यह है कि केवल संख्यात्मक सुचियों का संकलन ही अंगुत्तर-निकाय नहीं है । अंगुत्तरनिकाय को केवल संगीति-परियाय-सुत्त (दीघ.३।१०) या दमुत्तर-सुत्त (दीघ. ३।११) का ही विस्तुत रूप समझ लेना एक भारी भ्रम होगा। इसमें सन्देह नहीं कि अंगनर-निकाय के एक मे लेकर ग्यारह निपातों की विषय-वस्तु का स्वरूप वहाँ किमी न किमी प्रकार उनके अनरूप संख्या से सम्बन्धित है, जैसे कि १. एकक-निपात---एक धर्म क्या है ? इसी प्रकार के प्रश्नोत्तर के अनेक रूप। २. दुक-निपात--दो त्याज्य वस्तुएँ, दो प्रकार के ज्ञानी पुरुष, दो प्रकार के वल, दो प्रकार की परिषदें, दो प्रकार की इच्छाएँ, आदि, आदि। ३. तिक-निपात--तीन प्रकार के दुष्कृत्य (कायिक, वाचिक, मानसिक) तीन प्रकार की वेदनाएँ (सम्वा. दुःखा, न-सुखा-न-दुःखा), आदि, आदि। ४. चतुवक-निपात--चार आर्यमत्य, चार ज्ञान, चार श्रामण्य-फल, चार ममाधि, चार योग, चार आहार, आदि, आदि। ५. पञ्चक-निपात--पाँच अङ्गों वाली ममाधि, पाँच उपादान-स्कन्ध, पाँच इन्द्रियां, पाँच निम्मरणीय धातु, पांच धर्मस्कन्ध, पाँच विमक्ति-आयतन आदि आदि।
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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