SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 199
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १८० ) यह हम अंगुन्नर-निकाय के एकक-निपात के 'कजंगला-सत्त' में अच्छी प्रकार देख सकते है । कुछ उपासक कजंगला नामक भिक्षुणी के पास जाकर पुछते है "अय्या ! भगवान ने यह कहा है 'महा प्रश्नों में एक प्रश्न, एक उद्देश, एक उनर; दो प्रश्न, दो उद्देश. दो उत्तर . . . . . .दम प्रश्न, दम उद्देश, दस उन' ! भगवान के इस संक्षिप्त कथन का उत्तर किस प्रकार समझना चाहिये ? " कजंगला भिक्षुणी ने कहा “एक प्रश्न, एक उद्देन, एक उत्तर ! यह जो भगवान् ने कहा. वह इस कारण कहा । आवमो ! एक वस्तु में भिक्षु भली प्रकार निर्वेद को प्राप्त हो, भली प्रकार विराग को प्राप्त हो, भली प्रकार विरक्त हो, अच्छी प्रकार अन्तर्दी हो, इमी जन्म में दुःख का अन्त करने वाला हो। किम एक धर्म में ? 'सभी मत्व आहार पर निर्भर है। आवमो ! भगवान ने जो यह कहा 'एक प्रश्न, एक उद्देश, एक उत्तर ! वह इमी कारण कहा !" इसी प्रकार उत्तरोत्तर क्रम से बढ़ती हुई कजंगला भिक्षुणी दम प्रश्न, दस उद्देश, दम उनर (व्याकरण) तक की व्याख्या करनी है। गणनात्मक विधान होते हुए भी स्वयं उपदेश की गम्भीरता में कोई अन्तर यहाँ नहीं आता। यही बात विस्तार से हम अंगनर-निकाय में भी देखते है । चार आर्य सत्य, आर्य-अप्टाङ्गिक मार्ग, मात बोध्यङ्ग, चार सम्यक् प्रधान, पाँच इन्द्रिय आदि सभी मौलिक बुद्ध-उपदेश इमी संख्यात्मक तत्त्व की सुचना देते हैं। अंगत्तर-निकाय में केवल इसे उनके वर्गबद्ध स्वरूप में प्रस्तुत करने का आधार मान लिया गया है। अतः निश्चित है कि इसके अनेक मत्त या अंश जो पिछले निकायों में अनेक प्रसंगों में आ चुके है, यहाँ संख्यात्मक प्रणाली को पूर्णता देने के लिये फिर रख दिये गये है। उदाहरणत: चार आर्य सत्यों और आर्य अष्टाङ्गिक मार्ग सम्बन्धी उपदेश विनय-पिटक के महावग्ग तथा संयुत्त-निकाय के 'धम्मचक्क पवत्तन-मुन' में स्वभावत: वाराणसी में दिये हुए उपदेश के रूप में अंकित है, किन्तु अंगनर-निकाय में चार आर्य सन्यो सम्बन्धी उपदेश चतुक्क-निपात और आर्य अष्टाङ्गिक मार्ग सम्बन्धी उपदेश अटक-निपात में मंगहीत है। अतः यह बहुत सम्भव है कि कुछ स्थलों में अंगुनर-निकाय के मत्त दीप और मज्झिम निकायों के परिवर्तित, विभक्त अथवा संक्षिप्त स्वरूप ही हों। किन्तु अधिकतर म्थों में वे मौलिक ही है और १. इनकी सची के लिये देखिये पालि टैक्स्ट सोमायटी द्वारा प्रकाशित अंगुनरनिकाय, जिल्द पाँचवों, पष्ठ ८ (भमिका)
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy