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________________ वाली एवं सन्तान प्रसविनी स्त्री का आदर होता है। यदि स्त्री पतिव्रता, विनीत, लज्जाशील और ज्ञानवती हो तो वह मरने के बाद सद्गति प्राप्त करती है। दुराचारिणी, मूर्खा और निर्लज्जा होने पर वह मरने के बाद दुर्गतियों में पड़ती है। ४. जम्बुखादक-संयुत्त-जम्बुखादक नामक परिव्राजक के प्रति धर्मसेनापति सारिपुत्र का बुद्ध-धर्म पर उपदेश है। निर्वाण और अर्हत्त्व का अर्थ सारिपुत्र ने राग, द्वेष और मोह से विमुक्ति कहा है। इसे प्राप्त करने का उपाय आर्य अष्टाङ्गिक मार्ग ही है। जिसने राग-द्वेष को छोड़ दिया, वही मनुष्य सुखी है। आस्रवों (चित्त-मलों) से विमुक्ति पाने का आर्य अष्टाङ्गिक मार्ग से अतिरिक्त और कोई उपाय नहीं है। ५. सामंडक-संयुत्त--सामंडक नामक परिव्राजक के प्रति सारिपूत्र का 'निब्बाण' (निर्वाण) पर उपदेश है। विषय-वस्तु उपर्युक्त संयुत्त के समान ही ६. मोग्गल्लान-संयुत्त--महामोग्गल्लान (महामौद्गल्यायन) द्वारा भिक्षुओं को चार ध्यानों का उपदेश है । दीघ और मज्झिम निकायों के इस सम्बन्धी वर्णन से यहाँ कोई विशेषता नहीं है। बिलकुल उन्हीं शब्दों में यहाँ भी चार ध्यानों का विवरण दिया गया है। अरूपावचर भूमि के आकाशानन्त्यायतन, विज्ञानानन्त्यायतन, आकिंचन्यायतन और नैवसंज्ञानासंज्ञायतन नामक ध्यान-अवस्थाओं का भी यहाँ वर्णन किया गया है। ७. चित्त-संयुत्त-चक्षु, श्रोत्र, घ्राण, काय और मन रूपी इन्द्रियाँ बन्धन की कारण नहीं हैं । रूप, शब्द, गन्ध, स्पर्श और मानसिक धर्म भी बन्धन के कारण नहीं हैं। बन्धन की कारण तो वह वासना है, तृष्णा है, जो चक्षु और रूप के संयोग से उत्पन्न होती है, श्रोत्र और शब्द के संयोग से पैदा होती है, घ्राण और गन्ध के संयोग से पैदा होती है, काय और स्पर्श के संयोग से पैदा होती है, मन और धर्मों के संयोग से पैदा होती है। अतः इस वासना या तृष्णा का निरोध ही बन्धन-विमुक्ति का कारण है। ८. गामणि-संयुत्त-भोगवाद और तपश्चरण की अतियों को छोड़कर मध्यम मार्ग पर चलने का उपदेश गामणि को दिया गया है। क्रोध को छोड़कर क्षमाशील होने का भी यहाँ उपदेश दिया गया है। ९. असंखत-संयुत्त-निर्वाण असंस्कृत अर्थात् अकृत है। राग, द्वेष और मोह का सम्पूर्ण निरोध ही 'निर्वाण' कहा जाता है, कायिक-मानसिक जागरूकता
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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