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________________ ( १६८ ) ११. वलाह - संयुत्त -- ' वलाहक कायिक' अर्थात् बादल रूपी काया वाले देवताओं का वर्णन है । १२. वच्छगोत्त-संयुत्त —— वच्छगोत्त नामक परिव्राजक की मिथ्या- धारणाओं का भगवान् के द्वारा निवारण | क्या लोक शाश्वत है या अशाश्वत है, सात है या अनन्त है, जीव और शरीर एक ही हैं या अलग अलग हैं, आदि मिथ्या धारणाओं का कारण भगवान् ने पंच स्कन्धों (रूप, वेदना, संज्ञा, संस्कार, विज्ञान ) के वास्तविक स्वरूप ( अनित्य, दुःख, अनात्म) का अज्ञान ही बताया है । वच्छगोत्त परिव्राजक का भगवान् से संवाद मज्झिमनिकाय के विज्ज वच्छगोत्त-सुत्त' (१।३।१ ) में भी हुआ है । १३. भान ( या समाधि) संयुत्त — ध्यान या समाधि का विवरण है । भगवान् ने कहा है कि जो पुरुष ध्यान और उसकी प्राप्ति की रक्षा करने में कुशल है, वही सर्वोत्तम ध्यानी है । ४- सळायतन-वग्ग १. सळायतन - संयुत्त -- चक्षु और रूप, श्रोत्र और शब्द, घ्राण और गन्ध, काया और स्पर्श, मन और धर्म, सभी अनित्य, दुःख और अनात्म हैं। इन सब में 'मैं' और 'मेरा' की भावना करना उपयुक्त नहीं। इनमें जब आसक्ति को मनुष्य नष्ट कर देता है, तो वह बन्धन से छूट जाता है। उच्चतम संयम भी यही है । २. वेदना - संयुत्त -- सुख, दुःखा और न सुखा-न-दु:खा, ये तीन वेदनाएँ हैं । इनमें सुख की वेदना को दुःख के रूप में देखना चाहिये, दुःख की वेदना को शूल के रूप में देखना चाहिये और न सुख-न- दुःख की वेदना को अनित्य के रूप में देखना चाहिये | वेदनाओं को छोड़ देने वाला अनासक्त भिक्षु ही 'सम्यक् दृष्टि' सम्पन्न कहलाता है । ३. मातृगाम -संयुत्त -- स्त्रियों- सम्वन्धी बुद्ध-प्रवचन है । भगवान् ने स्त्रियों को पुरुषों की अपेक्षा अधिक दुःखभागिनी माना है । अतः ब्रह्मचर्य - जीवन की उनके लिये उतनी ही अधिक आवश्यकता भी । स्त्रियों को पाँच विशेष कष्ट हैं— बाल्य काल में माता-पिता का घर छोड़ना पड़ता है, उसे छोड़ कर दूसरे (पति) के घर जाना पड़ता है, गर्भ धारण करना पड़ता है, प्रसव करना पड़ता है, पुरुष की सेवा करनी पड़ती है । संसार में रूप, धन, चरित्र और परिश्रमी स्वभाव
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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