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________________ अनुभव करते हुए सप्ताहों तक समाधि में बैठे रहे। ब्रह्मा को चिन्ता हुई, इस प्रकार तो लोक नष्ट हो जायगा। जाकर भगवान् से प्रार्थना की-भन्ते ! लोक के हित के लिये धर्मोपदेश करें। भगवान् ने कहा कि जनता काम-वासनाओं में लिप्त है। वह उनके गम्भीर उपदेश को नहीं समझेगी। ब्रह्मा ने भगवान् से अनुनय की कि संसार में कुछ अल्प-मल प्राणी भी हैं और उनको भगवान् के उपदेश से अवश्य लाभ होगा। तथागत ने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली। उसके बाद भगवान् ने धर्म-चक्र-प्रवर्तन करने के लिये वाराणसी की ओर प्रस्थान किया। ७. ब्राह्मण-संयुत्त---एक भारद्वाज गोत्रीय ब्राह्मण की प्रव्रज्या का वर्णन है। अपनी पत्नी के मुख से बुद्ध-प्रशंसा सुन कर वह भगवान् बुद्ध के दर्शन के लिये गया। वहाँ उनके उपदेश से प्रभावित होकर उसने त्रिशरण (बुद्ध, धम्म और संघ की शरण) ली और प्रवजित हो गया। ८. वंगीस-संयुत्त-वंगीश नामक भिक्षु की काम-वासना पर विजय-प्राप्ति का वर्णन है। एक बार विहार में आई हुई कुछ सुन्दर, आभूषित स्त्रियों को देख कर उनके मन में काम उत्पन्न हो गया । काम-दुष्परिणाम का पर्यवेक्षण कर किस प्रकार इस भिक्षु ने काम-वासना से विमुक्ति पाई, इसका सुन्दर भावनामय वर्णन है। ९. वन-संयत्त-किस प्रकार वन-देवता भी पथ-भ्रष्ट भिक्षुओं को सम्यक् मार्ग पर लगा देते हैं, इसका कुछ भिक्षुओं के उदाहरणों के साथ वर्णन है। १०. यक्ख-संयुत्त-इन्द्रकूट और गृध्रकुट पर्वतों पर विचरते हुए भगवान् से कुछ यक्षों ने प्रश्न पूछे हैं, जिनका उन्होंने उत्तर दिया है। अनेक प्रश्नों में एक यह भी है "भन्ते ! बताइये कहाँ से काम-वासना, द्वेष, असन्तोष, भय आदि उत्पन्न होते हैं ?" भगवान् कहते हैं “हे यक्ष ! कहता हूँ। ध्यान से सुन । जो आत्मा और उसकी उत्पत्ति को जानते हैं वे इस दुस्तर भव-बाढ़ को तर जाते हैं, वे फिर इस संसार में जन्म प्राप्त नहीं करते।" इसी प्रकार वैर से कौन. मुक्त है, इसका उत्तर देते हुए भगवान् कहते हैं “जिसका चित्त दिन-रात वैरसाधन में लगा है, वह वैर से मुक्त नहीं होता। किन्तु जो सब प्राणियों के प्रति अहिंसा और मैत्री-भावना का आचरण करता है, वह वैर से विमुक्त हो जाता है। इसी संयुत्त में एक यक्षिणी को अपने प्रिय पुत्र को यह कह कर चुप करते हुए हम देखते हैं “चुप हो जा प्रियंकर! प्रिय वत्स चुप हो जा ! देख यह
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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