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________________ ( १३१ ) कल्पना कर ली है, जिसका निराकरण हम छठे अध्याय में उस सम्बन्धी विवरणं पर आते समय करेंगे। दीघ-निकाय के 'पायासि-सुत्त' जैसे सुत्तों में संवादात्मक शैली का जो परिष्कृत रूप दिखाई पड़ता है, उसी के आधार पर बाद में 'मिलिन्दपञ्ह' में इस कला में पूर्णता प्राप्त की गई है। __ जैसा पहले कहा जा चुका है, सुत्त-पिटक बुद्ध-वचनों का सब से अधिक महत्वपूर्ण भाग है । न केवल बुद्ध-उपदेशों को जानने के लिये ही बल्कि छठी और पाँचवीं शताब्दी ईस्वी पूर्व के भारत के सब प्रकार के ऐतिहासिक, सामाजिक और भौगोलिक ज्ञान का वह एक अपूर्व भांडार है। इतिहास और साहित्य के विद्यार्थी के लिये भी वह उतना ही महत्वपूर्ण है जितना बौद्ध धर्म और दर्शन के विद्यार्थी के लिये । गम्भीर विचारों की दृष्टि से उसका स्थान केवल उपनिषदों के माथ है। उपनिषदों से भी उसकी एक बड़ी विशेषता यह है कि उपनिषदों में जब कि विशुद्ध, निर्वैयक्तिक ज्ञान है, सुत्त-पिटक में उसके साथ साथ जीवन भी है। उपनिषदों में बुद्ध के समान ज्ञानी की जीवन-चर्या कहाँ है ? सुत्त-पिटक में निहित बुद्ध-वचनों की गम्भीरता की तुलना रायस डेविड्सने अफलातूं के संवादों से की है २ । अफलातूं के ज्ञान-गौरव की रक्षा करते हुए भी यह कहा जा सकता है कि तथागत की साधनामयी वाणी का तो शतांश गौरव भी उसके अन्दर नहीं है। बुद्ध-वचन अपनी गम्भीरता में सर्वथा निरुपमेय हैं। जब सम्यक् सम्बुद्ध जैसा वरदान ही प्रकृति ने मानव को नहीं दिया, तो उनके जैसे वचन भी कहाँ से हों? अतः धर्म, दर्शन, साहित्य, जीवन, इतिहास, प्राचीन भुगोल आदि सभी दृष्टियों से सुन-पिटक का अध्ययन अत्यन्त महत्वपूर्ण है। सुत्त-पिटक, जैसा पहले भी दिखाया जा चुका है, पाँच भागों में विभक्त है (१) दीघ-निकाय (२) मज्झिम-निकाय (३) संयुत्त-निकाय (४) अंगत्तरनिकाय और (५) खुद्दक-निकाय । इनमें प्रथम चार निकाय संग्रह-शैली की दृष्टि से समान हैं । पाँचवाँ निकाय छोटे छोटे (जिनमें कुछ बड़े भी हैं) स्वतन्त्र ग्रन्थों का संग्रह है। विषय तो सब का बद्ध-वचनों का प्रकाशन ही है। केवल सुत्तों के आकारों या विषय के विन्यास में कहीं कुछ अन्तर है। प्रत्येक निकाय की विषय-वस्तु का अब हम संक्षिप्त परिचय देंगे और साथ ही उनके साहित्यक १. इसके दर्शन के लिये देखिये आगे इस सत्त का विवरण । २. दि डायलॉग्स ऑव दि बुद्ध, जिल्द पहली, पृष्ठ २०६
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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