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________________ सुत्त (दीघ-११५) पोट्ठपाद-सुत्त (दीघ-११९) केवट्ट-सुत्त (दीघ-१।११) सुभ-सुत्त (दीघ-१।१२) चक्कवत्ति सीहनाद-सुत्त (दीघ-३।३), संगीति-परियायसुत्त (दीघ-३।१०), भयभेरव-सुत्त (मज्झिम-१।१।४) द्वेधावितक्क-सुत्त (मज्झिम१।२।९) महाअस्सपुर-सुत्त (मज्झिम-१।४।९) चूलहत्थिपदोपम-सुत्त (मज्झिम१।३।७) देवदहसुत्त (मज्झिम-३।१।१) वेरंजक-ब्राह्मण-सुत्त (अगुत्तर) झानसंयुत्त (संयुत्त-निकाय) आदि, आदि। चार आर्य सत्य, आर्य अष्टाङ्गिक मार्ग आदि के विषय में भी इसी प्रकार की पुनरुक्तियाँ दृष्टिगोचर होती हैं। संयुत्तनिकाय के सळायतन-संयुत्त में चक्षुरादि इन्द्रियों, उनके विषयों और विज्ञानों आदि को लेकर विस्तृत पुनरुक्तियाँ की गई हैं। अतः पुनरुक्तियों की अतिशयता सुत्तों की शैली की एक प्रधान विशेषता है और जिस कारण वह उत्पन्न हुई है उसका उल्लेख हम पहले कर चुके हैं। संख्यात्मक परिगणन की प्रणाली का प्रयोग भी बुद्ध-वचनों के भौखिक रूप से प्राप्त होने की परम्परा पर आधारित है। केवल स्मृति की सहायता के लिये ही भगवान् बुद्ध भी इसका प्रयोग करते थे। पूरा का पूरा अंगुत्तर-निकाय इसी संख्यात्मक प्रणाली पर संकलित किया गया है। अन्य निकायों में भी चार आर्य सत्य, पाँच नीवरण, ३२ महापुरुष-लक्षण, ६२ मिथ्यादुष्टियों आदि के संख्यात्मक निरूपण भरे पड़े हैं। सांख्य दर्शन और जैन-दर्शन तथा महाभारत आदि में भी संख्यात्मक वर्गीकरणों का प्रयोग दिखाई पड़ता है। पालि सुत्तों में इसका प्रयोग बहुलता से किया गया है, किन्तु वह अस्वाभाविक नहीं होने पाया है। पालि सुत्तों की उपमाएं बड़ी मर्मस्पर्शी हुई है। जीवन के अनेक क्षेत्रों से ये उपमाऍ ली गई है और उनकी स्वाभाविकता और सरलता बड़ी आकर्पक है। दीघ और मज्झिम निकायों के हिन्दी-अनुवाद में महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने इन निकायों में आई हुई उपमाओं की सूची दी है। उनसे सुत्तपिटक में आई हुई उपमाओं का कुछ अनुमान हो सकता है। जहाँ भी सुत्तों में कोई जटिल प्रश्न आया हम यह वचन देखते हैं 'ओपम्मं ते करिस्समि, उपमाय हि इधेकच्चे पुरिसा भासितस्स अत्थं आजानन्ति' अर्थात् 'मैं तुम्हें एक उपमा कहूँगा। उपमा से भी कुछ एक मनुष्य कहे हुए का अर्थ समझजाते हैं । उपमाओं की प्रणाली का अनुपिटक साहित्य पर भी इतना प्रभाव पड़ा है कि हम 'मिलिन्दपञ्ह' १. देखिये विटरनित्ज : हिस्ट्री ऑव इंडियन लिटरेचर, जिल्द दूसरी, पृष्ठ ६५, पद संकेत १
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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