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________________ ( ११७ ) अन्य देशों में गया, अतः उसकी प्रामाणिकता स्थविरवाद के सामने कुछ नहीं हा सकती। सर्वास्तिवादी ग्रन्थों के चीनी और तिब्बती अनुवाद भी ईसवी सन् के कई सौ वर्ष बाद हुए, अतः इस दृष्टि से भी उनमें परिवर्तन-परिवर्द्धन की काफी संभावना हो सकती है। फिर बौद्ध धर्म जहाँ जहाँ गया वह अपनी समन्वयभावना को भी अपने साथ लेता गया और जिन जिन देशों में उसका प्रसार हुआ, उनके लोक-गत विश्वासों का भी उसके अन्दर समावेश होता गया। अतः इस प्रवृत्ति के कारण भी सर्वास्तिवादी सम्प्रदाय के साहित्य में विभिन्नताएँ आ सकती हैं, जिनके मौलिक या उत्तरकालीन परिवर्तित होने का निर्णय हम उनके मूल के अभाव में नहीं कर सकते। भाषा के साक्ष्य पर भी हम उसे पालि-माध्यम के साथ मिला कर किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँच सकते। अतः दोनों के तुलनात्मक महत्व और प्रामाण्य का अंकन अभी हम अनिश्चित रूप से ही कर सकते हैं। फिर भी जो कुछ तथ्य उपलब्ध हैं, उनसे यही विदित होता है कि सर्वास्तिवादी माध्यम की अपेक्षा स्थविरवादी माध्यम ने ही बुद्ध-वचनों की अधिक सच्ची और प्रामाणिक अनुरक्षा की है। सर्वास्तिवादियों के अतिरिक्त अन्य बौद्ध सम्प्रदायों के विषय में, जिनकी उत्पत्ति अशोक के काल तक हो चुकी थी और जिनके साथ ही स्थविरवादियों जीवित सम्बन्ध की कल्पना हम कर सकते हैं, हमें महत्त्वपूर्ण कुछ भी ज्ञात नहीं है। इतना अवश्य कहा जा सकता है कि उनकी भी परम्पराएँ थीं अवश्य, किन्तु आज वे हमारे लिये प्राप्त नहीं हैं। द्वितीय संगीति के अवसर पर ही, जैसा हम पहले देख चके हैं,' महासंगीतिक भिक्षुओं ने सुत्त और विनय के कुछ अंशों के अतिरिक्त सम्पूर्ण अभिधम्म-पिटक की ही प्रमाणवत्ता स्वीकार नहीं की थी। उन्होंने विनय-पिटक के परिवार और सुत्त-पिटक के पटिसम्भिदामग्ग, निद्देस और जातकों के कुछ अंशों को भी प्रामाणिक नहीं माना था। अभिधम्मपिटक के अस्वीकरण में सर्वास्तिवादी और महासंगीतिक भिक्षु समान ही थे। अत: हमें उसके विषय में गम्भीरतापूर्वक सोचना पड़ेगा कि उसे कहाँ तक बुद्धवचन के रूप में प्रामाणिक माना जाय । यही स्थिति जातक, निद्देस और पटिसम्भिदामग्ग की भी है। इस सूची को और भी काफी बढ़ाया जा सकता है । उदाहरणतः थेरगाथा और पेतवत्थु जैसे ग्रन्थों में ऐसे आन्तरिक साक्ष्य हैं,२ जिनके १. दूसरे अध्याय में। २. देखिये आगे इसी अध्याय में खुद्दक निकाय का विवेचन
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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