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________________ [२२] विचार करनेके बाद भी संसारसे छुट कर मोक्ष पानेके साधनोंका निर्देश किया है । तत्वविचारणामें मतभेद हो सकता है, पर आचरण यानी चारित्र एक ऐसी वस्तु है जिसमें सभी विचारशील एकमत हो जाते हैं । विना चारित्रका तत्त्वज्ञान कोरी बातें हैं । चारित्र यह योगका किंवा योगांगोंका संक्षिप्त नाम है। अत एव सभी दर्शनकारोंने अपने अपने सूत्रग्रन्थों में साधन रूपसे योगकी उपयोगिता अवश्य. बतलाइ है। यहां तक की-न्यायदर्शन जिसमें प्रमाण पद्धतिका ही विचार मुख्य है उसमें भी महर्षि गौतमने योगको स्थान दिया है। महर्षि कणादने तो अपने वैशेषिक दर्शनमें यम, नियम, शौच आदि योगांगोंका भी महत्त्व गाया है। सांख्यसूत्रमें योगप्रक्रियाके वर्णनवाले कइ सूत्र हैं । ब्रह्म१ समाधिविशेपाभ्यासात् ४-२-३८ । अरण्यगुहापुलिनादिषु योगाभ्यासोपदेशः ४-२-४२। तदर्थ यमनियमा भ्यामात्मसंस्कारो योगाचाध्यात्मविध्युपायैः ४-१-४६ ॥ २ अभिपेचनोपवासब्रह्मचर्यगुरुकुलवासवानप्रस्थयज्ञदानप्रोक्षणदिनक्षत्रमन्त्रकालनियमाश्यादृष्टाय । ६-२-२। अयतस्य शुचिभोजनादभ्युदयो न विद्यते, नियमाभावाद्, विद्यते वाऽर्थान्तरत्वाद् यमस्य | ६-२-८। ३ रागोपहतिर्ध्यानम् ३-३० । वृत्तिनिरोवात् तस्मिाद्धिः
SR No.010623
Book TitlePatanjal Yogdarshan tatha Haribhadri Yogvinshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1922
Total Pages249
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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