SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 45
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [२१] चाहिये कि ऋग्वेदमें जो परमात्मचिन्तन अंकुरायमाण था वही उपनिषदोंमें पल्लवित पुष्पित हो कर नाना शाखा प्रशाखाओंके साथ फल अवस्थाको प्राप्त हुवा । इससे उपनिषदकालमें योगमार्गका पुष्टरूपमें पाया जाना स्वाभाविक ही है। ___ उपनिषदोंमें जगत, जीव और परमात्मसम्बन्धी जो तात्विक विचार है, उसको भिन्न भिन्न ऋषियोंने अपनी दृष्टि से सूत्रोमें ग्रथित किया, और इस तरह उस विचारको दर्शनका रूप मिला। सभी दर्शनकारोंका आखिरी उद्देश मोक्ष' ही रहा है, इससे उन्होंने अपनी अपनी दृष्टि से तत्त्व * प्रमाणप्रमेयसंशयप्रयोजनदृष्टान्तसिद्धान्तावयवतर्कनिर्णयवादजल्पवितण्डाहेत्वाभासच्छलजातिनिग्रहस्थानानां तत्वज्ञानामिश्रेियसाधिगमः । गौ० सू० १-१-१॥ धर्मविशेषप्रसूताद् उन्यगुणकर्मसामान्यविशेषसमवायानां पदार्थानां साधर्म्यवैधाभ्यां तत्त्वज्ञानान्निःश्रेयसम् ॥ वै० सू० १-१-४॥ अथ त्रिविधदुःखात्यन्तनिवृत्तिरत्यन्तपुरुषार्थः सां० १० १-१। पुरुषार्थशून्यानां गुणानां प्रतिप्रसवः कैवल्यं स्वरूपप्रतिष्ठा वा चितिशाक्तरिति । यो० सू० ४-३३॥ अनावृत्तिः शब्दादनावृत्तिः शब्दात् ४-४-२२ ब्र. सू.। सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः । तत्त्वार्थ १-१ जैन० दाबौद्ध दर्शनका तीसरा निरोध नामक आर्यसत्य हो मोक्ष है।
SR No.010623
Book TitlePatanjal Yogdarshan tatha Haribhadri Yogvinshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1922
Total Pages249
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy