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________________ ३६ सरकार ने राजस्थान-पुरातत्त्वान्वेषण-मन्दिर के सम्मान्य संचालक पुरातत्त्वाचार्य मुनि श्रीजिनविजय जी से इस संबन्ध मे सम्मति मांगी, और मुनिजी ने पुरातत्त्वान्वेषण-मन्दिर द्वारा उक्त पुस्तकों का प्रकाशन करना स्वीकार कर लिया । तदनुसार उक्त विभाग द्वारा सर्वप्रथम 'दुर्गा-पुष्पाञ्जलि' के प्रकाशित करने का निश्चय किया गया । मुनिजी ने इसका संपादन सम्बन्धी कार्यभार मुझ जैसे अल्पज्ञ व्यक्ति के हाथों में सौंप दिया। मैंने उनके आदेश का पालन करते हुए यथाशक्ति अपने दायित्व को निभाया और यह कार्य पूरा किया। यहां यह कहना अनुचित न होगा कि यह जो कुछ जैसा भी बन पडा है उसका श्रेय वास्तव में मुनिजी महाराज को है। क्योंकि यदि समय २ पर उनके द्वारा प्रेरणा और सत्परामर्श न मिलता रहता तो यह कार्य इस रूप में संभव न हुआ होता । अतः संपादक उनके बहुमूल्य सहयोग के लिए हार्दिक आभार मानता है । इसके अतिरिक्त, उक्त मन्दिर के प्रधान __ अनुसन्धान कार्य व्यवस्थापक पं० श्री गोपालनारायणजी बहुरा एम.ए., महोदय ने जिस तत्परता और लगन के साथ इसके प्रकाशन कार्य में अपना सौहार्दपूर्ण योग दिया है उसके लिए संपादक उनके प्रति हृदय से कृतज्ञ है । प्रूफ आदि के संशोधन में जयपुर राज्य के परंपरागत पश्चाङ्ग कर्ता पं० मदनमोहन शर्मा ने जो श्रम किया है, तदर्थं उन्हें धन्यवाद है। अंत में, यदि स्तोत्र-साहित्य के प्रेमियों को इससे कुछ भी संतोष मिला, तो मैं अपना यह प्रयास सार्थक समझूगा। ) 'सरस्वती पीठ' जयपुर २७-१२-५६ ई० -गंगाधर द्विवेदी
SR No.010620
Book TitleDurgapushpanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay, Gangadhar Dvivedi
PublisherRajasthan Puratattvanveshan Mandir
Publication Year1957
Total Pages201
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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