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________________ ३ तपस्या की, और इस स्थान की गौरव-वृद्धि में सहायक बने । कहा जाता है कि इनके समय मे पुनः इस तालाब में कमल-पुष्प उत्पन्न होने लगे थे और उनके निवास के समय तक यहां यही क्रम चलता रहा । इनके निवास के कारण इस तपोभूमि का महत्व और अधिक बढा तथा आस पास की गरीब जनता इनके सम्पर्क में आने लगी। यहां रहते हुये उक्त महापुरुष ने जन-साधारण का लौकिक उपकार तो किया ही साथ ही, जनता के वढते हुये अनुराग और भावना को देखकर दैवी प्रेरणा से प्राचीन चबूतरे के निकट महिषमर्दिनी की एक प्रतिमा भी स्थापित की जो आज भी विद्यमान है। इस प्रकार चण्डी जी की महिमा उत्तरोत्तर प्रान्त व्यापी वनती गई और लखनऊ तथा उसके आस पास की नागरिक एवं ग्रामीण जनता भगवती की कृपाभाजन बन गई। चण्डीजी का यह आश्रम पहले की अपेक्षा अव पर्याप्त उन्नति कर चुका है। लखनऊ के भक्त धनिकों ने यहां यात्रियों के लिये स्वतन्त्र धर्मशाला वनवादी है । इसके सिवा पुष्प-वाटिका तथा अन्य सुविधाजनक आवश्यक साधन भी उन लोगों की ओर से जुटा दिये गये हैं, और अव वहां जाने वाले यात्रियों के लिए पहले जैसी कोई विशेष असुविधा नहीं रही है। सुना जाता है कि यातायात वढ जाने के कारण वक्सी तालाब से चण्डिकाश्रम तक पक्की सड़क बनाये जाने की योजना सरकार के समक्ष विचाराधीन है, आशा है, जनता की यह इच्छा-पति निकट भविष्य मे पूरी होकर रहेगी। चण्डिका स्तुति में इन्हीं भगवती चण्डिका के आश्रम का प्राकृतिक वर्णन तथा जङ्गल मे मगल करने वाली इनकी असाधारण महिमा का चित्रण किया गया है। पृथ्वीचन्द में निर्मित संस्कृत की यह सरस स्तुति उनकी महिमा के अनुरूप वहुत सुन्दर बन पड़ी है । परिचयार्थ उसके कुछ श्लोक यहां दिये जाते हैं 'अनुग्रहरसच्छटामिव सरःश्रियं यान्तिके ____ विकासयति, पद्मिनीटलसहस्रसन्दानिताम् ।' प्रतिक्षणसमुन्मिपत्प्रमदमेदुरां तामहं भजामि भयखण्डिका सपदि चण्डिकामम्बिकाम् ।।'
SR No.010620
Book TitleDurgapushpanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay, Gangadhar Dvivedi
PublisherRajasthan Puratattvanveshan Mandir
Publication Year1957
Total Pages201
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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