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________________ उसकी वर्तमान जीर्ण-शीर्ण अवस्था को देखकर उसके दुर्भाग्य पर तरस आता है । यहां के खरबूजे बड़े मधुर और सुस्वादु होते है। किन्तु प्रायः लखनऊ के लक्ष्मीपतियों को ही उसका रसास्वादन सुलभ होता है । अस्तु । रेलमार्ग से आने वाले यात्री यहीं उतरते हैं । चण्डीजी का स्थान यहां से ६ मील पड़ता है । आजकल रोड़वेज पर सरकारी वस सर्विस के चल जाने से यातायात की सुविधा अधिक सुलभ होगई है । अधिकतर नागरिक यात्रियों का दल रोडवेज द्वारा ही यहां पहुंचा करता है । यहां से एक कच्ची सड़क चण्डीजी के आश्रम तक चली गई है । मन्दिर से लगभग २ फर्लाङ्ग पहले ही 'चांदन कूड़ा' नामक एक गांव पड़ता है जो चण्डीजी के नाम से ही प्रसिद्ध होगया है । यात्रियों को हवन-पूजन की सामग्री यहीं से खरीदनी होती है। चण्डीजी का मन्दिर निर्जन प्रदेश में गोमती नदी के तट पर स्थित है। किन्तु नदी का वास्तविक रूप यहा विलीन होकर तालाब के रूप में बदल गया है- यह इसकी विशेषता है । चण्डीजी के इस जलाशय को देखकर अपरिचित व्यक्ति यह नहीं जान सकता कि वास्तव में गोमती का ही यह प्रच्छिन्न रूप है। वैसे गोमती का जल प्रवाह-मार्ग स्वभाविक ढङ्ग से बहुत टेढा-मेढा और दुर्गम है । तो भी यत्र तत्र उनका अद्भुत रूप परिवर्तन देखकर आश्चर्य होने लगता है। उक्त जलाशय (कुंड) का पानी वहुत मधुर और शीतल है। यात्री लोग इसी जल से स्नान करते हैं और यही जल मन्दिर की सेवा-पूजा तथा पीने के काम में भी लाया जाता है । तालाव की गहराई का सही अनुमान लगा सकना कठिन है। ऐतिहासिक मान्यता-चण्डीजी के सम्बन्ध मे कोई ऐतिहासिक विवरण नहीं मिलता । केवल किंवदन्तियों अथवा दन्तकथाओं के आधार पर ही अपेक्षित तथ्य जाना जा सकता है । इस स्थान के सम्बन्ध मे स्थानीय जनता में चिरकाल से अनेक किंवदन्तियां प्रचलित है। जो कि सत्य के निकट पहुंचने में सहायक हैं। यहा संक्षेप मे उनका सार उपस्थित किया जाता है प्राचीनकाल में यहां एक दुर्गम और घना जङ्गल था, जो कि तालाब के चारों ओर दूरतक फैला हुआ था । इस जगह एक ऊँचा और विशाल निम्ब का वृक्ष था। उसके आलवाल के रूप में चारों तरफ से एक चबूतरा बना हुआ था, जो चण्डीजी के चबूतरे (चत्वर) के नाम से प्रसिद्ध था । हमारे देश में निम्ब
SR No.010620
Book TitleDurgapushpanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay, Gangadhar Dvivedi
PublisherRajasthan Puratattvanveshan Mandir
Publication Year1957
Total Pages201
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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