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________________ संस्कृत-कालेज के सरस्वती-भवन से 'काशी विद्यासुधानिधि' (The Pandit ) नाम का मासिक-पत्र निकलता था। उसमें संशोधित और परिष्कृत रूप में संस्कृत साहित्य के विभिन्न विषयों के प्राचीन ग्रन्थों का प्रकाशन होता था। उसको देखभालकर द्विवेदीजी ने नवीन रोति से अन्य संपादन-कला का ज्ञान प्राप्त किया और ऐतिहासिक तत्त्वों की छानबीन मे निपुणता प्राप्त करली। आपके प्रधानाध्यापक वापूदेव शास्त्री कोंकण देश के दक्षिणी ब्राह्मण और अगरेजी ग्रह गणित के मार्मिक विद्वान् थे। वे योरोपियन प्रकारों का भारतीय सिद्धान्तों के साथ तुलनात्मक विवेचन किया करते थे। इस प्रसंग से आप भी अंग्रेजी ग्रहगणित के मूल सिद्धान्तों से भलीभांति परिचित होगये थे। इस प्रकार काशी मे विद्योपार्जन पूरा होने पर कालेज से परीक्षा का प्रमाण पत्र लेकर आप अपने गांव पंडितपुरी को. वापस आगये। आपके पिता राज्याश्रित होने से जयपुर मे रहा करते थे। ____साहित्य सवन्धी कार्यक्षेत्र का सामयिक ज्ञान प्राप्त होने से आप लखनऊ में उक्त मुंशी महोदय से मिले और दो प्रस्ताव उपस्थित किये । पहला ऋग्वेद का हिन्दी अनुवाद और दूसरा ज्योतिष के पाठ्य गणित-ग्रन्थों का हिन्दी अनुवाद । मुन्शीजी ने प्रस्तावों का अनुमोदन किया और आपको ग्रन्थ संपादन का कार्य सौंपा। आपने प्रथम भास्कराचार्य की लीलावती और वीजगणित का क्रम से संस्कृत टीका, भापा भाप्य एवं गणितोपपत्ति के साथ अनुवाद किया। दोनों ही ग्रन्थ नवल किशोर प्रेस, लखनऊ से प्रकाशित किये गये। जो आज भी शिक्षा संस्थाओं में पाठ्यग्रन्थ हैं। ऋग्वेद का अनुवाद भी आपने कई मण्डलो तक किया, किन्तु मुन्शीजी का आकस्मिक देहावसान होजाने से यह महाकार्य अधूरा ही रह गया। उसके बाद आप अपने पिता के पास जयपुर को चले गये। जयपुर में आपने महाराजा सवाई रामसिंहजी के नाम से 'राम गुणोदय' नामक चम्पू-काव्य लिखना आरंभ किया और चार सर्ग तक लिखा भी, परन्तु राजवैद्य भट्ट श्रीकृष्णराम कवि 'जयपुर विलास' काव्य पहले ही वना चुके थे इसलिए आपने उक्त चम्पू काव्य को दूसरे चरितनायक भगवान् रामचन्द्र की ओर ले जाकर 'दशकण्ठवध' नामक चम्पू काव्य बनाया । जो कि अभी हाल ही मे राजस्थान सरकार के 'राजस्थान पुरातत्त्वान्वेपण मन्दिर' द्वारा प्रस्तुत ग्रन्थमाला
SR No.010620
Book TitleDurgapushpanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay, Gangadhar Dvivedi
PublisherRajasthan Puratattvanveshan Mandir
Publication Year1957
Total Pages201
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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