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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भट्टारक संप्रदाय युक्तवीर के पट्ट पर माणिकसेन प्रतिष्ठित हुए । इन ने शक १४२४ में एक अरहंत मूर्ति स्थापित की [ ले. २७, २८ ] । इन के बाद क्रमशः गुणसेन और लक्ष्मीसेन पट्टाधीश हुए। गुणसेन का नामान्तर गुणभद्र था । लक्ष्मीसेन ने एक नंदीश्वर मूर्ति और एक अनंत यंत्र प्रतिष्ठापित किया किन्तु इन दोनों पर संवत् का निर्देश ठीक नहीं है [ले. २९-३३ ] । सोमविजय ने आप की स्तुति की है । आप के बाद सोमसेन पट्टाधीश हुए । कृष्णपुर पार्श्वनाथ स्तोत्र इन्ही की रचना है । इन ने संवत १५९७ में कोई मूर्ति प्रतिष्ठापित की (ले. ३४-३६)। ___ इन के बाद क्रमशः माणिक्यसेन और गुणभद्र भट्टारक हुए (ले. ३७-३८)। गुणभद्र के शिष्य सोमसेन दीर्घकाल तक पट्टाधीश रहे। इन ने संवत १६५६ के श्रावणमें रविषेण कृत पद्मचरित के आधार पर संस्कृत में रामपुराण की रचना की (ले. ३९)। शब्दरत्नप्रदीप नामक संस्कृत कोश की संवत् १६६६ मे उदयपुर मे लिखी गई एक प्रति पर आप का नाम अंकित है (ले. ४०)। धर्मरसिक त्रैवर्णिकाचार नामक संस्कृत ग्रंथ आप ने संवत् १६६७ की कार्तिक पौर्णिमा को पूरा किया (ले. ४१)। शक १५६१ की फाल्गुन शुक्ल ५ को आप ने पार्श्वनाथ और संभवनाथ की मूर्तियां प्रतिष्ठापित की (ले. ४२, ४३ ) । आप के शिष्य अभय पंडित ने रविव्रत कथा लिखी है (ले. ४४ )। सोमसेन के पट्ट पर जिनसेन आसीन हुए। आप ने शक १५७७ की मार्गशीर्ष शुक्ल १० को पार्श्वनाथ की मूर्ति स्थापित की (ले. ४५)। शक १५८० में आप ने पद्मावती की मूर्ति प्रतिष्ठित की (ले. ४६ )। यह १४ अगले लेख को देखते हुए कृष्णपुर कालवाडा का संस्कृत रूप प्रतीत होता है । यह सूरत जिले में है। For Private And Personal Use Only
SR No.010616
Book TitleBhattarak Sampradaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV P Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1958
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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