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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. सेनगण इन के अनंतर धारसेन का उल्लेख है [ले. १०]। इन का भंभेरी के धनेश्वर भट्ट के साथ कुछ विवाद हुआ था।" इन के बाद देवसेन का उल्लेख है । इन के एक शिष्य ने समयसार की एक प्रति लिखि थी। इस का लेखन स्थान खानदेश जिले का धरणगांव था [ ले. २० ] । इन के पट्ट पर सोममेन अधिष्ठित हुए [ले. २१,२२]। विदर्भ स्थित कारंजा शहर में इन के शिष्य बबेरवाल ज्ञातीय साह पूनाजी खटोड रहते थे। आप ने १०८ मंदिर बनवाये थे और १८ स्थानों पर शास्त्र भांडार स्थापित किये थे। चित्तौड किले पर चंद्रप्रभमंदिर के सामने आप ने एक कीर्तिस्तम्भ स्थापित किया था ।" आप का यह वृत्तान्त जिस लेख से मिलता है उस में संवत् १५४१ और शक १४९१ के अंक है जो गलत हैं क्यों कि इन दोनों में उक्त क्रोधित संवत्सर नहीं आता है। यह विषय अनुसंधान की अपेक्षा रखता है। इन के पट्ट पर गुणभद्र विराजमान हुए [ले. २३, २४ ] । आप ने संवत् १५७९ में एक जलयंत्र प्रतिष्ठापित किया था। आप के बाद क्रमशः वीरसेन और युक्तवीर पट्ट पर आए। वीरसेन ने कर्णाटक में उपदेश दिया था ले. २५, २६ ] । शासक संभवतः सुलतान महमदशाह वेगडा है जिसका राज्य काल सन १४५८१५११ ईसवी है। १० यह गांव विदर्भ के अकोला जिले मे है। ११ यह प्रति संवत १५१० की लिखी है। उस के ८० वें पृष्ठ पर यह लेख है। इस की पूरी प्रशस्ति के लिए (ले. ५६५ ) देखिए । १२ इस के विषय मे मतान्तरों की चर्चा के लिए अनेकान्त वर्ष ८ पृ. १४२ में . मुनि कान्तिसागर का लेख देखिए। १३ संभवतः इन्ही का उल्लेख भ. सोमकीर्ति के एक लेख में हुआ है (ले. ६५१)। इनके एक और सम्भव उल्लेत्र के लिए देखिए नोट ८४ । For Private And Personal Use Only
SR No.010616
Book TitleBhattarak Sampradaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV P Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1958
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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