SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 330
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८४ भट्टारक संप्रदाय लेखांक ७३६ - इंद्रभूषण सूरिराय पाय विद्वज्जन वंदित । राजकीर्तिनो शिष्य वैश्यमत दूरे स्थापित ।। सकलदेशमाहे प्रगट कविजनमाहे मानती। जिनसेन कहे मूलसंघ सेनगण बारबार करती स्तुती ॥ १४ (म. ४९) लेखांक ७३७ - श्रीकाष्ठासंघ नाम प्रथम गोत्र पंचवीस । मूलसंघ उपदेश गोत्र अंते सत्तावीस ।। बघेरवाल बड ज्ञाति गोत्र बावण गुणपूरा । धर्मधुरंधर धीर परम जिण मारग सूरा ॥ महाव्रतधारक श्रीभट्टारक लक्ष्मीसेनय जानिये । गुरु इंद्रभूषण गंगसमसुगुण नरेंद्रकीर्ति बखाणिए ॥ ११२ ( म. ४९) लेखांक ७३८ - गुरुस्तुति स्वस्ति स्यात्यदलांछिते वरगणे काष्ठादिसंघे सुधीः ख्यातः प्रीतमना नृणां बहुमतः श्रीराजकीर्तिस्ततः । लक्ष्मीसेनविभुस्ततोथ विलसच्छ्रीजैनभूषामणिः जीयाद् वासवभूषणश्च सुकृतेर्बीजस्य रक्षामणिः ।। (म. १०८) लेखांक ७३९ - काष्ठासंघ गछांबर ए मुनि सुंदर इंदु सो इंद्रभूषण विराजे । सुमत्यब्धि कहे गछपति समो अन्य कोइ नहीं अवनी मान पावे ।।१४ ( म. ४९) लेखांक ७४० - श्रीराजकीर्ति सिष्यह सुगुण लक्ष्मीसेन पट्टोधरण । For Private And Personal Use Only
SR No.010616
Book TitleBhattarak Sampradaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV P Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1958
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy