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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६८ भट्टारक संप्रदाय [६६२ - सूरिकेशवसेन एवं संयजे विनतीश्वरं ।। ( ना. ६३) लेखांक ६६३ - वीराबाई मात उदर सर मान हंस कल । हर्षसाह कुल भाण प्रकटयस सदा सुनिर्मल ।। कुमति किरिट घट सिंह ब्रह्म मंगल बड सोदर । नरपतिपूजितपाय कणकचंपकवपुसुंदर ॥ . काष्ठासंघ गिरिराज रवि कविराज जग जय धरण। सकलसूरिसिरमुगुटमनी केशवसेन सूरि सुखकरण ।। ८८ लेखांक ६६४ - केशवसेन सूरींद्र चंद्रमुख मदनमनोहर । याचक गुण गायंत ब्रह्म मंगल जस सोदर । कल्लोलकीर्ति वादीमहरि इंदार मझ सूरिपद-धरण । प्रात प्रात तस जपता सकलसंघ-मंगल-करण ।। ९० ( म. ४९) लेखांक ६६५ - ( हरिवंशपुराण-श्रीभूपण ) विश्वकीर्ति ____ श्री संवत् १७०० श्रीकाष्ठासंघे भ. सोमकीर्ति तत्पट्टे भ. विजयसेन तत्पट्टे भ. यश:कीर्ति तत्पट्टे भ. उदयसेन तत्पट्टे भ. त्रिभुवनकीर्ति तत्पटे भ.रत्नभूषण तत्पट्टे भ. जयकीर्ति तत्पट्टे भ. केशवसेन तच्छिष्य विश्वकीर्तिलिखितं ॥ ( कारंजा) लेखांक ६६६ - ( न्यायदीपिका ) सं. १६९६ श्रीकाष्ठासंघ नदीतटगच्छे भ. रत्नभूषण तत्पट्ट भ. जयकीर्ति तत्पट्टे भ. केशवसेन तत्पट्टे भ. विश्वकीर्ति तच्छिष्य पं. मनजी लिखितं मालासा ग्रामे || ( कारंजा) For Private And Personal Use Only
SR No.010616
Book TitleBhattarak Sampradaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV P Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1958
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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