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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९८ भट्टारक संप्रदाय कर्मकाण्ड टीका लिखी आप का नाम अंकित ८१] । सुमतिकीर्ति की सहायता से आप ने ( ले. ४८३ ) । पंचास्तिकाय की एक प्रति पर है (ले. ४८२ ) । आप के शिष्य सुमतिकीर्ति के उपदेश से संवत् १६१६ की कार्तिक शु. ३ को गणितसारसंग्रह की एक प्रति दान की गई (ले. ४८४ ) । सुमतिकीर्ति ने चौरासी लक्ष योनि विनती की रचना की ( ले. ४८५ ) । इन के अतिरिक्त रत्नभूषण आदि साधु ज्ञानभूषण के शिष्य थे। ज्ञानभूषण ने गिरनार, शत्रुंजय, तुंगीगिरि, चूलगिरि आदि क्षेत्रों की यात्रा की थी (ले. ४८६ ) । ज्ञानभूषण के पट्ट पर प्रभाचन्द्र भट्टारक हुए। आप ने त्रेपन क्रिया विनती लिखी (ले. ४८७ ) | आप के गुरुबन्धु सुमतिकीर्ति ने संवत् १६२५ में हांसोट में धर्मपरीक्षा रास की रचना की । आप ने शत्रुजय पर शान्तिनाथ मन्दिर के निर्माण का तथा श्वेताम्बरों के साथ हुए बाद का उल्लेख किया है । धर्मपरीक्षा के लिए पंडित हेम ने प्रेरणा की T थी (ले. ४८८ ) । सुमतिकीर्ति ने संवत् १६२७ में माघ शु. १२ को कोदादा शहर में त्रैलोक्यसार रास की रचना पूर्ण की (ले. ४८९ ) । प्रभाचन्द्र के पट्टपर वादिचन्द्र भट्टारक हुए। आप के समय संवत् १६३७ में उपाध्याय धर्मकीर्ति ने कोदादा में श्रीपालचरित्र की प्रति लिखी (ले. ४९१ ) | आप ने संवत् १६४० में वाल्मीकनगर में पार्श्वपुराण की रचना की ( ले. ४९२ ), संवत् १६४८ में मधूकनगर में ज्ञानसूर्योदय नाटक लिखा (ले. ४९३ ), संवत् १६५१ में श्रीपाल आख्यान पूरा किया (ले. ४९४ ), संवत् १६५७ में अंकलेश्वर में यशोधरचरित की रचना की तथा महुआ में पार्श्वनाथ छंद लिखे (ले. ४९५-९६) । ८६ आप के विषय में नोट ६४ तथा ६१ तथा १२९ देखिए | ८७ शत्रुंजय के शान्तिनाथ मन्दिर का निर्माण ( ले ३८८ ) के अनुसार संवत् १६८६ में हुआ किन्तु इस लेख से उस के पूर्व भी एक शान्तिनाथमन्दिर वहां था ऐसा प्रतीत होता है । For Private And Personal Use Only
SR No.010616
Book TitleBhattarak Sampradaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV P Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1958
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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