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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११. बलात्कार गण-सूरत शाखा १८७ तत्पट्टामलभूषणं समभवदैगंबरीये मते । चंचबईकरः सभातिचतुरः श्रीमत्प्रभाचंद्रमाः ॥ तत्पट्टेजनि वादिवृन्दतिलकः श्रीवादिचंद्रो यतिस्तेनायं व्यरचि प्रबोधतरणिर्भव्याब्जसंबोधनः ।। २ ॥ वसुवेदरसाब्जांके वर्षे माघे सिताष्टमी दिवसे । श्रीमन्मधूकनगरे सिद्धोयं बोधसंरम्भः ॥ ३ ॥ ( जैन साहित्य और इतिहास पृ. २६८ ) लेखांक ४९४ - श्रीपाल आख्यान प्रगट पाट त अनुक्रमे मानु ज्ञानभूषण ज्ञानवंतजी। तस पद कमल भ्रमर अविचल जस प्रभाचंद्र जयवंतजी ॥ जगमोहन पाटे उदयो वादीचंद्र गुणालजी। नवरस गीते जेणे गायो चक्रवर्ति श्रीपालजी ॥ संवत सोल एकावनावर्षे कीधो ये परबंधजी। [जैन साहित्य और इतिहास पृ. २७० ] लेखांक ४९५ - यशोधरचरित तत्पदृविशदख्यातिर्वादिवृन्दमतल्लिका। कथामेनां दयासिद्धयै वादिचंद्रो व्यरीरचत् ।। ८०॥ अंकलेश्वरसुग्रामे श्रीचिंतामणिमंदिरे। सप्तपंचरसाब्जांके वर्षेकारि सुशास्त्रकम् ॥ ८१ ॥ (उपर्युक्त पृ. ७१२). लेखांक ४९६ - पार्श्वनाथ छंद मव्हा नयरे तोरो वास श्रीसंघनी तू पूरे आस ॥ ७२ ॥ ...झानभूषण गुरु ज्ञानभंडार सरस्वतीगछमाहे शृंगार ॥ ७४ ॥ तस पाटे दीठे आनंद प्रभा विराजित प्रभासुचंद्र । वादिचंद्र वर सुधा सुलीह For Private And Personal Use Only
SR No.010616
Book TitleBhattarak Sampradaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV P Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1958
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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