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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भट्टारक संप्रदाय है । इस के अनुसार आप ने बड़े समारोह से समुद्रतट पर स्नान किया था । ' ४. स्थल और काल साधुत्व के नाते भट्टारकों का आवागमन भारत के प्रायः सभी भागों में होता था । दक्षिण में मूडबिद्री, श्रवणबेलगोल, कारकल, हुंबच इन स्थानों पर देशीय गण आदि शाखाओं के पीठ स्थापित हुए थे । प्रस्तुत ग्रन्थ में वर्णित भट्टारक भी यात्रा के लिए श्रवणबेलगोलतक आते जाते थे यद्यपि इस प्रदेश से उन के कोई स्थायी सम्बन्ध नहीं थे । इस से दक्षिण में तमिलनाड और केरल ये दो प्रदेश प्राचीन समय जैनधर्म के प्रभाव क्षेत्र में रहे थे किन्तु भट्टारकों का कोई सम्बन्ध उन से नहीं था । पूर्व भारत में सम्मेदशिखर, चम्पापुर, पावापुर और प्रयाग की यात्रा के लिए विहार होता था। वैसे इस प्रदेश में न तो कोई भट्टारकपीट था, न उन का शिष्यवर्ग था | आरा के नजदीक मसाद में काष्ठासंघ के कुछ उल्लेख मिले हैं । उनके अतिरिक्त पूर्व भारत से प्रायः कोई स्थायी सम्बन्ध नहीं था । महाराष्ट्र में मलखेड का पीठ बलात्कारगण का केन्द्र था । इसी की दो शाखाएं कारंजा और लातूर में स्थापित हुई, जिन का वर्णन प्रकरण ३ और ४ में हुआ है। कोल्हापुर में लक्ष्मी सेन और जिनसेन इन दो भट्टारकों की परम्पराएं थीं किन्तु उन का इस ग्रन्थ में सम्मिलित करने योग्य वृत्तान्त हमें प्राप्त नहीं हो सका । ये दोनों भट्टारक अपने को सेनगण के पट्टाधीश मानते हैं । बलात्कारगण के अतिरिक्त कारंजा में सेनगण और लाडबागड गच्छ के भी पीठ थे। इन पीठस्थानों के अतिरिक्त विदर्भ के रिद्धिपूर, बाळापुर, रामटेक, अमरावती, आसगांव, एलिचपुर, नागपुर आदि स्थानों में तथा मराठवाडा के जिन्तुर, नांदेड, देवगिरि, पैठन, शिरड आदि स्थानों में इन पांच पीठों के शिष्यवर्ग अच्छी संख्या में रहते थे। मूल उल्लेखों में इस भाग का उल्लेख प्रायः वराट, वैराट, वन्हाड आदि नामों से हुआ है । मलखेड को मलयखेड और कारंजा को कार्यरंजकपुर की संज्ञा मिली है। गुजरात में सूरत बलात्कार गण का और सोजित्रा नन्दीतर गच्छ का केन्द्र था। समुद्रतटवर्ती इलाकों में नवसारी, भडोच, खंभात, जांबूसर, घोघा आदि स्थानों में भट्टारकों का अच्छा प्रभाव था । उत्तर गुजरात में ईडर का पीठ महत्त्व १ देखिए लेखांक ७५. २ देखिए लेखांक ५१४, १२५ आदि. ३ देखिए लेखांक ४३९ आदि. ४ देखिए लेखांक ५८६ आदि. For Private And Personal Use Only
SR No.010616
Book TitleBhattarak Sampradaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV P Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1958
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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