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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . बलात्कार गण-ईडर शाखा १५७ आप की आम्नाय में ब्रह्मलालजी ने संवत् १७०२ की माघ शु. ३ को भीलोडा शहर में गणितसारसंग्रह की एक प्रति लिखी [ले. ३८९] । पद्मनन्दि के पट्ट पर देवेन्द्रकीर्ति आरूढ हुए। आप की आम्नाय में ब्रह्म तेजपाल ने संवत् १७१३ की कार्तिक शु. ८ को सागवाडा में रावल पुंजराज के राज्यकाल में ६५ शब्दार्णवचन्द्रिका की प्रति लिखी [ले. ३९० ] । तथा मुनि त्रिभुवनचन्द्र ने संवत् १७२५ की कार्तिक शु. १० को गणितसारसंग्रह की प्रति लिखी [ले. ३९१ । देवेन्द्रकीर्ति के बाद क्षेमकीर्ति पट्टाधीश हुए। आप ने संवत् १७३४ में सेटलवाड में एक मूर्ति स्थापित की [ले. ३९२ ] । आप के पट्टशिष्य नरेन्द्रकीर्ति हुए । इन के शिष्य लालचंद ने संवत् १७६२ में तक्षकपुर में अष्टसहस्री की प्रति लिखी [ ले. ३९३ ] । नरेन्द्रकीर्ति के पट्ट पर क्रमशः विजयकीर्ति, नेमिचन्द्र और चन्द्रकीर्ति भट्टारक हुए । चन्द्रकीर्ति ने संवत् १८३२ में केशरियाजी तीर्थक्षेत्र में चौवीस तीर्थंकरों की चरणपादुकाएं स्थापित की [ ले. ३९४ ] । चन्द्रकीर्ति के बाद रामकीर्ति और उन के बाद यशःकीर्ति भट्टारक हुए । आप के उपदेश से संवत् १८६३ की आषाढ शु. ३ को केशरियाजी मन्दिर के परकोट का निर्माण पूरा हुआ ( ले. ३९५ ) । ६६ ६५ पुंजराज कोई स्थानीय शासक थे । इन का निश्चित राज्यकाल ज्ञात नहीं। ६६ ब. शीतलप्रसादजी ने ईडर के भट्टारकों का जो वृत्तान्त दिया है उस में यशःकीर्ति के बाद क्रमश: सुरेन्द्रकीर्ति, रामकीर्ति कनककीर्ति और विजयकीर्ति का उल्लेख किया है । ईडर का हस्तलिखित शास्त्र भाण्डार बडा समृद्ध है। ( दानवीर माणिकचंद्र पृ. ३३) For Private And Personal Use Only
SR No.010616
Book TitleBhattarak Sampradaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV P Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1958
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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