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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भट्टारक संप्रदाय आशाधर कृत धर्मामृत की वृत्ति, तीस चौवीसी पूजा, सिद्ध पूजा, सरस्वती पूजा, चिन्तामणि पूजा, कर्मदहनविधान, गणधरवलयपूजा, पार्श्वनाथकाव्य की पंजिका, पल्योपमविधान, चारित्रशुद्धि के १२३४ उपवासों का विधान, स्वरूपसम्बोधन की वृत्ति, चिन्तामणि सर्वतोभद्रव्याकरण, तथा अंगप्रज्ञप्ति । . शुभचन्द्र के पट्ट पर सुमतिकीर्ति भट्टारक हुए । आप ने संवत् १६२२ की वैशाख शु. ३ को कोई मूर्ति तथा संवत् १६२५ की पौष कृ. ५ को तारंगा क्षेत्र पर एक वेदी की प्रतिष्ठा की (ले. ३७६-७७ ] । इन के बाद गुणकीर्ति भट्टारक हुए । आप ने संवत् १६३१ की फाल्गुन शु. १० को एक अजितनाथ मूर्ति तथा संवत् १६३७ की वैशाख कृ. ८ को एक अन्य मूर्ति प्रतिष्ठित की (ले. ३७८-७९ )। आप के प्रशिष्य शंकर ने सागवाडा में संवत् १६३९ की कार्तिक शु. ५ को जीवंधर रास की एक प्रति लिखी [ ले. ३८० ] | गुणकीर्ति रचित श्रेणिकपृच्छा कर्मविपाक नामक रचना उपलब्ध है [ले. ३८१ ] । गुणकीर्ति के पट्ट पर वादिभूषण भट्टारक हुए । आप के शिष्य देवजी के लिए संवत् १६५२ की ज्येष्ठ कृ. १० को अध्यात्मतरंगिणी की एक प्रति लिखी गई [ले. ३८२ ] । आप ने संवत् १६५५ की वैशाख शु. ६ को एक वासुपूज्य मूर्ति तथा संवत् १६५६ की फाल्गुन शु. ३ को एक अन्य मूर्ति स्थापित की [ ले. ३८३-८४] । वादिभूषण के बाद रामकीर्ति पट्टाधीश हुए। आप ने संवत् १६७० की फाल्गुन कृ. ५ को एक सुपार्श्व मूर्ति तथा एक पद्मप्रभ मूर्ति प्रतिष्ठित की [ ले. ३८५-८६ ] । रामकीर्ति के पट्ट पर पद्मनन्दि भट्टारक हुए । आप ने संवत् १६८३ की माघ शु. ५ को पार्श्वनाथ मूर्ति स्थापित की [ ले. ३८७ ] । संवत् १६८६ की वैशाख शु. ५ को शाहजहाँ के राज्य काल में शत्रुजय सिद्धक्षेत्र पर आप ने शान्तिनाथ मन्दिर की प्रतिष्ठा की [ले. ३८८] । For Private And Personal Use Only
SR No.010616
Book TitleBhattarak Sampradaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV P Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1958
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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