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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org - १५२ [ ३९४ - लेखांक ३९४ चंद्रकीर्ति स्वस्तिश्री संवत १८३२ शाके १६८७ प्रवर्तमाने शुभकारक कल्याणमासे कृष्णपक्षे ३ तृतीया शुभस्थ तिथि शुक्रवासरे श्रीखङ्गदेशे धूलेवग्रामे श्री ऋषभदेव चैत्यालये श्रीमूलसंघे सरस्वतीगच्छे बलात्कारगणे श्रीकुंदकुंदाचार्यान्वये भ. श्रीसकलकीर्ति तत्पट्टे भुवनकीर्ति तदनुक्रमेण भ. श्रीक्षेमकीर्ति पट्टे श्रीनरेंद्रकीर्ति तत्पट्टे भ. श्रीविजयकीर्ति तत्पट्टे भ. नेमिचंद्र तत्पट्टे भ. श्री १०८ श्रीचंद्रकीर्ति प्रतिष्ठिते बाईजी श्रीसजूबाईके चतुरविंशति जिनपादुका स्थापितं शुभं । भट्टारक संप्रदाय चरण पादुका लेखांक ३९५ - शिलालेख Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( केशरियाजी, वीर २ पृ. ४६० ) यशः कीर्ति देडार देश मेवाडमे उदयापुर सुजान । राज करे तिह राजवी भीमसिंह राजान || संवत १८६३ मे अषाड सुदी ३ तीज । गुरुवारे मुहूर्त कन्यो भली तरे पूजा कीध ।। मूलसंघ गछ सरस्वती बलात्कार गण धरबुडौ । कुंदकुंद सूरिवर भलौ सकलकीर्ति गछ । ते पाढे गुरु शोभतो भुवनकीर्ति नमूं पाय । ज्ञानभूषण ते पाटे प्रगट विजयकीर्ति सूरि दृश्य ॥ शुभचंद्र सूरियर सदा सुमतिकीर्ति गुणकीर्ति गुरु | गुपातिल वादिभूषण तस पाट रामकीर्ति पाट शोभतो ॥ राख्यो धर्मन ठाठ पद्मनंदि पाठे सुजस । देवेंद्रकीर्ति गुणधार खेमकीर्ति पर उज्ज्वलो ॥ नरेंद्रकीर्ति मनुहार विजयकीर्ति पट्टे गुरु | नेमिचंद्र भवतार चंद्रकीर्ति चंद्र समो ॥ रामकीर्ति सुखकार यशःकीर्ति सूरिवर सिंह । उदयो पुन्य अंकुर करी प्रतिष्ठां दुर्ग तणी ॥ जस व्याप्यो भरपूर बागडदेश सुहावनो । सागलपुर वर ग्राम संघपति साहर लिया | ( केशरियाजी, वीर २ पृ. ४६१ ) For Private And Personal Use Only
SR No.010616
Book TitleBhattarak Sampradaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV P Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1958
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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