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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४० भट्टारक संप्रदाय [३४६ - लेखांक ३४६ - कर्मविपाक रास सरस्वति स्वामिणि सरस्वति स्वामिणि तणइ पसाइ । रास कियो मि निरमलो करमविपाकतणो निरमलो। ते कर्मक्षय कारणि ।। सुणो भवियण तम्हे मनोहार । श्रीसकलकीरति पाय प्रणमीनि मुनि भुवनकीरति भवतार । ब्रम्ह जिणदास म्हणे वांदिस्यु मागिस्यु तम्ह गुण सार ।। [ना. ७] लेखांक ३४७ - धर्मपरीक्षा रास श्रीगणधर स्वामी नमसकरू श्रीसकलकीरति भवतार । मुनि भुवनकीरति पाय प्रणमीनि कहिलूं रासहु सार ॥१ धरमपरीक्षा करूं निरमली भवियण सुणो तम्हे सार । ब्रम्ह जिणदास कहि निरमलो जिम जाणो विचार ॥ २ [ना. ३८] लेखांक ३४८ - जंबूस्वामी रास श्रीसकलकीरति गुरु प्रणमीने हो भुवनकीरति गुरु वांदि । रास कियो मई निरमलो हो जंबूकुंअरनु आदि । .. 'पढइ गुणइ जे सांभलि तेह घरि ऋद्धि अनंत । . ब्रम्ह जिणदास इणि परि भणि मुगति रमणी होइ कंत ॥ [ना. ३७] लेखांक ३४९ - जीवंधर रास जीवंधर स्वामी तणो मि रास कीधो सरस सोहावणो । सरस्वति तणइ पसाइ निरमल कामदेव गुरु वरणव्या । श्रीसकलकीरति गुरु प्रणमीने वली भुवनकीरति भवतार । ब्रम्ह जिणदास भणे निरमलो पढो तम्हे भवियण सार । [ना, ३६] For Private And Personal Use Only
SR No.010616
Book TitleBhattarak Sampradaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV P Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1958
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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