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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - ३४५] ९. बलात्कार गण-ईडर शाखा १३९ भविभविनि ग्रंथ सेविसुं मागिसुं चरणेहु वास ।। ४४ (म, ४५) लेखांक ३४२ - ज्येष्ठ जिनवर पूजा श्रीसकलकीरति गुरु प्रणमिने जिनवर पूज रयं । ब्रह्म भणे जिनदास तो आतमा निर्मलयं ॥१४ [च. १९०५] लेखांक ३४३ - पार्श्वनाथ मूर्ति भुवनकीर्ति संवत् १५२७ वर्षे वैशाख वदि ११ बुधे श्रीमूलसंघे भ. श्रीसकलकीर्तिस्तत्पट्टे भ. श्रीभुवनकीर्ति उपदेशात् हुँबुध गोत्रे ॥ (भा.७ पृ. १६) लेखांक ३४४ - रामायण रास श्रीमूलसंघ अति निरमलो सरसतीगछ गुणवंत । श्रीसकलकीरति गुरु जाणीइ जिणसासणि जयवंत ॥ तास पाटि अति रूवढा श्रीभुवनकीर्ति भवतार । गुणवंत मुनि गुणि आगला तप तणा भंडार । तीहु मुनिवर पाय प्रणमीने किया रास ए सार । ब्रह्म जिनदास भणे रूवडो पढतां पुण्य अपार ॥ शिष्य मनोहर रूवडा ब्रह्म मलिदास गुणदास । पढो पढावो विस्तरे जिम होइ सौख्य निवास ॥ संवत पंनर अठोत्तरा मागसिर मास विशाल । शुक्ल पक्ष चउ दिन रास कियो गुणमाल । (ना. २२) लेखांक ३४५ - हरिवंश रास उपर्युक्त के समान, सिर्फ अन्तिम पद्य भिन्न हैसंवत पंनर वीसोत्तरा वैशाख मास विशाल । सुकल पक्ष चौदासि दिन रास कियो गुणमाल । [ना. २०] For Private And Personal Use Only
SR No.010616
Book TitleBhattarak Sampradaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV P Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1958
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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