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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - १८४] ३. बलात्कार गण-कारंजा शाखा शक्रकीर्ति गनधर सम मुनी तत्पट धर्मचंद्र गुनमनी ॥ २३ शांतमतींदुमती अर्जिका इन आग्रह वृषभे करी कथा । संवत अठरासे विस आठ केतुत्साह तिथी दिन पाट ॥ २४ लेखांक १८२ – निर्दोष सप्तमी कथा .. 'नानाशास्त्रविशारदः परप्रवादीभेद्रपंचाननः श्रीभट्टारककुंजरो गुणनिधिः सद्धर्मचंद्रोजनि ।। वर्षे शून्यकृशानुनागविधुसंख्ये नीलपक्षे तिथौ पंचम्यां शुचि मासि चंद्रजदिने श्रुत्पक्षसंस्थे विधौ ।। सद्भव्याश्रितकार्यरंजकपुरेनल्पोपमालंकृते श्रीचंद्रप्रभदेवचैत्यनिलये पापौघविध्वंसिनि ॥ तच्छिष्यर्षभदासनामविदुषातीवाल्पबुद्धथा शुभं यन्निर्दूषणसप्तमीव्रतवरिष्ठोद्यापनं निर्मितं ।। ( प. २) लेखांक १८३ - ऋषिमंडल यंत्र संवत् १८३१ शके १६९६ श्रावण सुदि १३ शुक्र वासरे श्रीमूलसंघे भ. श्रीधर्मचंद्रदेवाः तत्पट्टे भ. देवेंद्रकीर्तिदेवाः तत्पट्टधुरंधरश्रीमद्भट्टारकधर्मचंद्रजि उपदेशात् ।। (व. ३) लेखांक १८४ - नववाडी कुंदकुंदमुनिवंश वास कारंज इक पुरी। धर्मचंद्रपदमित्र शक्रकीरति अनगारी ॥ तस पट्टे गुणसद्म धर्मचंद्राभिध स्वामी । तेह शिष्य मतिमंद विशद बुध वृषभ सुनामी ।। तिणे शील छप्पय मुदा रच्या भाद्र सुदि पंचमी । नग नव रस चंद्रम शके पढ़त भव्य सुखसंगमी ॥ २५ (म. ७२) For Private And Personal Use Only
SR No.010616
Book TitleBhattarak Sampradaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV P Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1958
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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