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________________ ५० दनारसीदास, 40 मराज और जानदान - MA: प्राप्त है। वर्तमान समय में तो इसके हिन्दी, गुजराती, दमा " एव गधमय अनुवाद निकल चुक । क गटामीन प्रस्तुत सस्करण का इतिहास इस स्तोत्र के कतिपय दैनिक पाटी भरा जीर आरामानी ! अवश्य है किन्तु इसके गस्य मे अनभितरामा जानकारी प्राप्त करने के इच्छुक थे और गर मा मर्मज्ञ की तलाश में थे। वार्ता के दौरान श्रीमानhisha a दिव्यप्रभा जी के गहन अध्ययन की जातपाल ' वाल्यकाल से ही भक्तामर-पाठी, लाराधिन और मानक आ . अनुभूति भी इन्हें हैं। इनके जीवन का सदल मी याया ___ सयोग से वर्ष १९८९ का चार्तुमास अवर - 30477* आग्रह से सायीचर्या ने रविवार को इस पर प्रा . इनके सत्रह (१७) प्रवचन (ए। प्रवचनों के आधार पर '; इसका पुस्तक के रूप में सम्पादन किया। ये प्रवचन वस्तुत दिव्यानभाजी म० मा० ... 1 2 1 चितन में गहगई है, अनुभूति है. और भक्त पदय unki ! २५ मा परम्परागत अर्थों पर म्बतत्र चितन प्रस्तुत करताप का प्रयल भी किया है। इनकी प्रतिपादनली मे मीप्रमादि। हुआ है। प्रवचनों के साथ ही जिज्ञासापरक प्रशों का समाधी दिया Moilo विस्तार से दिया था। उसका प्रस्तुतिकरण टेपरेकॉर्ड का आधार पर भी शामित कुमार चोरड़िया ने किया है जो परिशिष्ट में दिया गया है। __ इस अमूल्य उपहार के लिए हम चिदुपी मायाग्ला पॉ0 मुक्तिरभाजी, गायी io दिव्यप्रभाजी, साध्वी अनुपमाजी के भी अत्यन्त आभारी है। इसका व्यवस्थित प्रारूप तैयार करने में महामहोपाध्याय श्री विनय सागर जी की सेवाओं को भी धिरगृत नही किया जा सकता। श्री शान्ति कुमार चोरड़िया भी साधुयाद के पात्र हैं। प्रस्तुत पुस्तक प्राकृत भारती के पुष्प-७६ के रूप में इस सयुक्त प्रकाशा को प्रकाशित करते हुये हमें हार्दिक प्रसन्नता है।
SR No.010615
Book TitleBhaktamar Stotra Ek Divya Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1992
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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