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________________ आश्चर्य ५९ अपनी महज स्थिति है। परमात्मा के प्रति की जानेवाली स्तुति, भक्ति या वात्सल्य आत्मा को परस्वरूप वैभाविक स्थिति से मुक्त कर निज-सहज आनन्दमय स्थिति का प्रथम वोध कराती है और अन्त मे आत्मा तत्स्वरूपमय हो जाती है। ___ अत यह कोई विशेष आश्चर्य नही। फिर भी यदि सामान्य अवोध इसे आश्चर्य माने भी तो इससे बड़ा ससार का कोई आश्चर्य भी नही है कि जिनकी हम भक्ति करते हैं, जिनको हम नमस्कार करते हैं वह हम ही हैं। हम से वह अलग नही है और हम उससे अलग नहीं हैं। इस श्लोक मे भकार शब्द की अभिव्यजना वडी रोचक और रहस्यभरी है। इसमे कुल ११ "म" का प्रयोग हुआ है। जो स्तोत्र के विशेष सम्बन्ध से सन्दर्भित है। भकार की रहस्य भरी कड़ी इस प्रकार है१ भक्त - भक्तामर स्तोत्र का प्रारम्भ, २ भगवान - भक्त जिससे सम्बन्ध वाधता है, ३ भक्ति - भक्त और भगवान को जोड़नेवाली, ४ भन्ते। - भगवान से जुड़ जाने पर भक्त द्वारा भगवान को किया जानेवाला सवोधन है। जिमका अर्थ सर्व भयो का या भवो का अत करनेवाले भगवान्। ५ भाव-प्रभाव - भाव भक्त के हों तो प्रभाव भगवान का हो सकता है। ६ भेद-विज्ञान - एक ऐसा ज्ञान जिसमे देह और आत्मा की भिन्नता की अनुभूति प्रकट होती है। भक्तामर स्तोत्र में इसे सिद्ध करने की क्षमता है। ७ भाषाचरिम स्तोत्र की सम्पूर्ण सार्थकता है। जिसके बाद कुछ कहने को वाकी नहीं रहता। ८ भाव चरिम - हमारे भावों का अर्घ्य म्वीकार करनेवाले ऐसे आराध्य। जिसके बाद हम अपने भावों की अजलि का कही अभिषेक नहीं करते हैं, या ऐमा कहो जिसके बाद दूसरा आराध्य अद हो नहीं सकता है। ९ भूतनाय -- इस शब्द के द्वारा हम से अतिरिक्त अन्य जीव सृष्टि के माघ भी परमात्मा का सम्दन्ध स्थापित होता है। १० भद्र - भक्ति करने पर भक्त की प्रकृति भद्र याने सरल होती है। भद्र याने कुशल रहता है। ११ मुल्लो-मुज्ज - इममा अर्थ है दाग्दार। ऐमे परमाला क भयानरम मिलने के लिए प्रयुक शास्त्रीय :ब्द।
SR No.010615
Book TitleBhaktamar Stotra Ek Divya Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1992
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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