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________________ २० भक्तामर स्तोत्र . एक दिव्य दृष्टि हे विबुधार्चित पादपीठ परमात्मा! लीजिए, मै परिचय प्रस्तुत करता हूँ। परिचय मै दूंगा, लेकिन मै निराश होकर आप के द्वार से लौटने वाला नही हूँ बुद्ध्या विनाऽपि विबुधार्चितपादपीठ। स्तोतु समुद्यतमतिर्विगतत्रपोऽहम् ॥ १. बुद्धया विना-मेरा पहला परिचय यह है कि मै बिना बुद्धि का हूँ क्योकि मै न तो आपको जानता हूँ और न मै अपने आपको जानता हूँ परन्तु मै इतना अवश्य जानता हूँ कि “जो जाणादि अरहत दव्वत्त-गुणत्त-पज्जत्तेहि। सो जाणादि अप्पाण, मोहो खलु जादि तस्स लय॥ जो अरिहत परमात्मा को द्रव्य-गुण-पर्याय की दृष्टि से अर्थात् पूर्णरूप से जानता है, वही अपने आत्म-स्वरूप को (भी) जानता है (और) उसी के राग-द्वेषादि मोहनीय कर्मों का वास्तव मे नाश होता है। जीवन मे कुछ ऐसे क्षण आते हैं जब बुद्धि बिगडती है और तब उन क्षणो मे व्यक्ति बडे से बडा पाप भी सहज कर डालता है। ___स्मृति का जब नाश होता है तब बुद्धि बिगडती है इसीलिए गीता मे कहा है"स्मृते शात् बुद्धिनाश " स्मृति याने स्मरण । स्मरण आत्मा का। मै कौन हूँ उसका सच्चा भान, भ्रांति का टूटना, सम्यक् से जुड़ना है। ___ मै डॉक्टर नही, वकील नही, सेठ नही, बेटा नही, बाप नही, मॉ नही, पली नही, पति नही, मै तो सत, चित, आनन्द और सहज स्वरूप हूँ। मै ज्ञानमय, दर्शनमय और चारित्रमय हूँ। अफसोस, जगत् को जानने वाला स्वय को ही नही जानता है। दुनियाभर की बाते करने वाले को घर मे से निकाला गया है। "जो जानता है अन्तर् को, उस अन्तर्यामी को भूल गये। __ अफसोस गजब घर वाले ही, घर के स्वामी को भूल गये॥ विगतत्रप -परमात्मा। मुझ मे बुद्धि तो नही है परन्तु प्रभु। मुझे लज्जा-शर्म भी तो नही है। नालायक, बेशर्म या निर्लज्ज उनको कहा जाता है जो अपने पर किये जाने वाले उपकारो का विस्मरण कर दे। परमात्मा। पूर्वाग्रह, पैसा, परिवार, प्रज्ञा, प्रतिष्ठा और पदवीप्रबध रूप इस प्रतिभासित जगत के साथ सबध स्थापित कर मैने आपके पवित्र, शाश्वत, ध्रुव और नित्य ऐसे सम्यक् आत्मधर्म का विस्मरण कर दिया। काच के पात्र की तरह अत्यन्त नाजुक, प्रत्येक पल मे टूटने की आशका/भय वाले सासारिक प्रावधानो की प्रतिपालना मे मै अपने निजरूप को, आपके वीतरागधर्म को भूल गया और फिर भी आज लज्जा का त्यागकर तेरे सामने आया हूँ।
SR No.010615
Book TitleBhaktamar Stotra Ek Divya Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1992
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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