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________________ १५६ भक्तामर स्तोत्र एक दिव्य दृष्टि को विशेष मत्रो से अभिमंत्रित करके उसकी आरी से ललाट की हड्डी को काटकर उसमे छेद करते हैं। बाद मे दूसरी शलाका रूप जड़ी-बूटी अभिमंत्रित कर छेद मे डाली जाती है। ते समय इसे मस्तिष्क के विशेष भाग से टकराकर डाली जाती है जिससे वह उत्तेजित हो जाय और वह व्यक्ति दिव्यदृष्टि से सपन्न हो जाय । २. मानसिक सक्रमण - यह भारत की मानी हुई विद्या है। इसमे आपस मे दूर रहे दो सबंधित व्यक्ति बिना किसी साधन प्रयोग के एक दूसरे को सदेश (Message) देते-लेते हैं। इस व्यापक सृष्टि मे हजारो मील दूर ये सदेश बिना किसी व्यवधान के अपनी यात्रा सफल कर पहुँचते हैं और पुन वहॉ का सदेश लेकर वापस लौटते हैं। सामान्यत. कई बार व्यक्ति अपने विशिष्ट आवेगो के कारण दूर तक अपने भावो को फैला सकता है । परन्तु उसे इस बात की प्रामाणिकता का अनुभव बिना प्रयोग के नही होता है । उदाहरणत व्यक्ति भोजन तो करता है, और उन पदार्थों का फल भी पाता है, फिर भी समस्त पाचन तन्त्र से वह अनभिज्ञ रहता है। आहार को पचाने के लिए पाचनतन्त्र से काम लेने पर भी वह पाचनतन्त्र से अनभिज्ञ रहता है उसी प्रकार सामान्य व्यक्ति भी मानसिक सक्रमण की प्रक्रिया से गुजरता अवश्य है, पर समझता नही है । अनजान मे भी कई बार वह प्यार के अधिकारो मे स्नेही मुझे इस समय याद कर रहा है ऐसा अनुभव करता है। इसी प्रकार बिना किसी कारण प्रसन्न या उदास भी होता है। अपनी आसपास की अवस्था या परिस्थिति में वह प्रसन्नता, आनद या उदासीनता का कारण ढूँढ़ने का प्रयास करता है। प्रयोग के जानने वाले यथोचित रूप मे प्रयोग के माध्यम से सदेश देते-लेते हैं। इसमे दो प्रयोगकर्ता दूर रहकर अपने निश्चित किये हुए समय मे मन्त्र स्मरण, स्तोत्र स्मरण, तालयुक्त प्राणायाम आदि द्वारा एक दूसरे से सबध स्थापित कर सदेश देते-लेते हैं। यह तालयुक्त प्राणायाम हाथ की कलाई मे अगूठे की ओर नब्ज देखने वाली नाडी की धड़कन की गति के अभ्यास से सिद्ध होता है। इसमें सुखासन में बैठकर नाडी की गति को १ से ६ तक गणनापूर्वक पूरक, १ से ३ तक आभ्यतर कुभक, पुन १ से ६ तक रेचक, फिर १ से ३ तक बाह्यकुभक किया जाता है | इसमे प्रति समय दोनो मे नियोजित मन्त्र स्मरण अनिवार्य है । मन्त्र से उत्पन्न ध्वनि प्राणवायु से सबध स्थापित कर विशिष्ट रूप से ऊर्जान्वित होकर दूर तक जाती है और वहाॅ से प्रतिध्वनि के रूप मे सदेश लेकर वापस लौटती है, इसे बिना तार का यन्त्र (Wireless telegram) कहते हैं। इसमे प्राणवायु Telephone है और निर्धारित मन्त्राक्षर उसके Number हैं। इसे Transmigrals या Transmission System भी कहते हैं । इस प्रकार मानसिक सक्रमण के द्वारा अपनी विचार तरगे दूर-दूर भेजी जा सकती हैं। विचार तरगो की गति मे ईथर (Ether) नामक एक व्याप्त तत्व की सहायता रहती है । यह ईथर तत्व तरगो की गति मे सहायता प्रदान करता है। सामान्यत विचारो की गति
SR No.010615
Book TitleBhaktamar Stotra Ek Divya Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1992
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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